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________________ अपनी राजधानी पुण्डरीकिणीपुरी आकर बालपुण्डरीक का राजतिलक किया विश्वस्त वृद्ध मंत्रियों के साथ में राज्य का भार सौंप दिया। एक दिन राजा रानी शयनागार में सोये थे। चन्दन आदिका सुगन्धित धुंवा फैल रहा था। दुर्भाग्य से सेवक महल की खिड़कियां खोलना भूल गया। जिससे धुंआ संचित होता रहा। उसी धुंए से राजदम्पति का स्वास रूक गया, सदा के लिए सोते रह गये। वे दोनों मरकर उत्तर कुरूक्षेत्र में आर्य एवं आर्या हुए। वे नकुल, व्याघ्र, सूकर एवं बंदर भी उसी क्षेत्र में आये हुए थे। सुख से रहने लगे। इधर उत्पल खेट नगर मे राजा वनजंघ के विरह से मतिवर, आनन्द, धनमित्र एवं अकम्पन पहले तो दुखी हुए अन्त में जिन दीक्षा धारण करली । तप के प्रभाव से स्वर्ग में अहमिन्द्र हुए। एक दिन उत्तर कुरूक्षेत्र में आर्य एवं आर्या कल्पवृक्ष के नीचे बैठे क्रीड़ा कर रहे थे आकाश मार्ग, से दो मुनि राज पधारे। आर्य दम्पति ने उनका स्वागत किया चरणों में नमस्कार कर पूछा आर्य ! पूर्व काल में जब आप राजा महाबल थे तब आप कहां से आ रहे हैं एवं इस भोग भूमि में किधर मैं आपका स्वयंबुद्ध नाम का मंत्री था। मैने ही आपको जैन धर्म का विहार कर रहे हैं? हमारा हृदय भक्ति भाव से उमड़ उपदेश दिया था। जब आप बाइस दिन का सन्यास धारण कर मर रहा है कृपा कर कहिए आप कौन हैं? कर स्वर्ग चले गये। मैनें जिन दीक्षा धारण करली थी। जब मुझे अवधिज्ञान से मालूम हुआ कि आप यहां हैं तब मैं आपको धर्म का स्वरूप समझाने के लिए आया हूँ। ROI 12 हे भव्य ! विषयाभिलाषा प्रबलता से महाबल पर्याय में आपको | कुछ समय बाद आयु पूर्ण होने पर आर्य एवं आर्या के जीव ऐशान स्वर्ग में देव निर्मल सम्यगदर्शन प्राप्त नही हुआ था। इसलिए आज निर्मल हुए। शार्दूल, सूकर, बंदर व नेवले के जीव भी उसी स्वर्ग में देव हुए। वहां सम्यग्दर्शन को धारण करो। यह दर्शन ही संसार के समस्त || अनेके भोग भोगते हुए सुख से रहने लगे। काल क्रम से स्वयं बुद्ध मंत्री के जीव दुखों को दूर करता है। जीव अजीव आस्रव बंध, संवर प्रीतिकर मुनिराज को श्री प्रभ पर्वत पर केवल ज्ञान हुआ। सभी देव उनकी निर्जरा एवं मोक्ष इन सात तत्वों कातथा दया धर्म का सच्चे मनावदना के लिए गयादेवन अपनगुरूस पुछा। से श्रद्धान करना ही सम्यग्दर्शन है। भगवन् ! महाबल के भव में सम्भिन्नमति /निगोदराशि में उत्पन्न हो अचिन्त्य शतमति तथा महामति नाम के मेरे जो तीन/दुख भोग रहे हैं तथा शतमति मिथ्या मिथ्या दृष्टि मंत्री थे वे अब कहां हैं। -ज्ञान के प्रभाव से दूसरे नरक में कष्ट भोग रहा है। 4 LOCOM उपदेश देकर मुनिराज आकाश मार्ग से विहार कर गये।। जैन चित्रकथा 13
SR No.033221
Book TitleChoubis Tirthankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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