SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यह सुन राजा वज्रजंघ व श्रीमती को रोमांच हो आया। वे तत्क्षण उसी ओर गये जिस ओर मुनिराज गये थे। निर्जन वन में एक शिला पर बैठे हुए मुनि युगल को देखकर राज दम्पति के हर्ष का पार न रहा। मुनिराजों के चरणों में मस्तक नवाकर गृहस्थ धर्म का आख्यान सुना इसके बाद अपना पूर्व भव सुनकर राजा वज्रजंघ ने पूछा ....... हे मुनिराज ! ये मतिवार आनन्द एवं राजन ! अधिकतर पूर्वभव के संस्कारों से ही अकम्पन मुझसे बहुत स्नेह करते हैं। प्राणियों में परस्पर स्नेह अथवा द्वेष रहा करता मेरा भी इनसे अत्यधिक प्रेम है। है। आपका भी इनके साथ पूर्वभव का सम्बन्ध इसका क्या कारण है। है। सुनो मैं इनके पूर्वभव सुनाता हूँ। EOB जम्बूद्वीप के विदेह क्षेत्र वत्सकावती देश में प्रभाकरी नगर हैं। वहां का राजा नरपाल आरम्भ परिग्रह में लीन रहता था। इसलिए वह मरकर पंकप्रभा नरक में गया। अनेक दुख भोगकर उसी नगरी के पास शार्दूल (व्याघ्र) हुआ। किसी समय उस पर्वत पर वहां के तात्कालिक राजा प्रितीवर्धन अपने छोटे भाई के साथ रूके हुए थे। राजपुरोहित ने उनसे कहायदि आप इस पर्वत पर इस निर्जन पहाड़ पर कोई मुनि मुनिराज के लिए आहार आहार के लिए क्यों आवेगा? देवें तो विशेष पुण्य लाभ होगा। आप नगरी के समस्त रास्ते सुगन्धित जल से सिंचवा कर उन | पर ताजे फूल बिछवादें। जिससे कोई निर्ग्रन्थ मुनि उसमें प्रवेश नहीं करेगा। वे नगरी में न जाकर इसी ओर आवेंगे। तब आप पड़गाह कर उन्हें विधिपूर्वक आहार दे सकते हैं। mne राजा प्रीतीवर्धन ने पुरोहित के कहे अनुसार ऐसा ही किया |जिससे पहितास्व नामक मुनि नगरी को विहार के अयोग्य समझकर उसी पर्वत की ओर आ गये। चौबीस तीर्थकर भाग-1
SR No.033221
Book TitleChoubis Tirthankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy