SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक समय राजा वज्रबाहु महल की छत पर बैठे आकाश की || इधर चक्रवर्ती राज सभा में बैठे थे कि माली ने उन्हें एक कमल का फूल सुषमा निहार रहे थे। संसार के सभी पदार्थ इसी बादल अर्पित किया। उस कमल की सगन्धि से चारों ओर भौरे मंडरा रहे थे। ज्यों ही उन्होंने निमीलित कमल को विकसाने का प्रयत्न किया त्यों ही उसमें रूके के समान क्षणभंगुर हैं मैं इस राज्य विभूति को स्थिर समझ कर व्यर्थ ही विमोहित हो रहा हूँ। नर भव पाकर भी जिसने हुए मृत भौरे पर उनकी दृष्टी पड़ी। वह भौरा सुगन्धि के लोभ से सायंकाल के समय कमल के भीतर बैठा था कि अचानक सूर्य अस्त हो गया जिससे वह उसी मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयत्न नहीं किया वह फिर सदा के में बन्द होकर मर गया था। लिए पछताता है। जब यह भौरे एक नासिका इन्द्रिय के विषय में आसक्त हो रहे हैं वे क्यों भौरे की तरह मृत्यु को प्राप्त न होंगे। संसार मे इन्द्रिय के विषय ही प्राणियों को दुखी करते हैं। मैंने जीवनभर विषय सुख भोगे पर कभी सन्तुष्ट नहीं हुआ। C00 CIDR | ऐसा चिन्तवन करके राजा संसार से एक दम उदासीन हो गये। पुत्र वज्रजंग को राज्यतिलक कर वन जाकर आचार्य के पास यह चिन्तवन कर उन्होंने जिन दीक्षा धारण का संकल्प कर लिया। जब पुत्रों दीक्षा लेकर तप करने लगे। उनके साथ श्रीमती के सौ पुत्र ने राज्य लेना अस्वीकार कर दिया तब अपने छ: माह के पौत्र पुण्डरीक पंडिता सखि एवं अनेक राजाओं ने भी जिन दीक्षा गृहण की। को राज्य दे दिया पुत्रों तथा पुरवासियों के साथ दीक्षित हो गये। चक्रवर्ती एवं पुत्र अमिततेज के विरह से सम्राज्ञी लक्ष्मीमती तथा / महारानी ने पत्र भेजकर दामाद वनजंघ को बुलाया कुछ समय के बाद अनुन्दरी बहुत दुखी हुई। कहां चक्रवर्ती का विशाल राजा वजजंघ व श्रीमती पुण्डरीक की तरफ आये उनके साथ सारा साम्राज्य एवं कहां छ: माह का अबोध बालक पुण्डरीक। अब सरकारी लवाजमा था। रथ घोड़े हाथी से सजी विशाल सेना थी। राज्य की रक्षा किस तरह होगी। एक सुन्दर सरोवर के पास सैना को रोक कर स्वयं श्रीमती के साथ नगर में जाने लगे। दो मुनिराज विहार करते हुए वहां से निकले / राजा dरानी ने मुनियों को शुद्ध सरस आहार दिया उसके बाद मुनिराज वन कीओर विहार कर गये। ये युगल मुनि आपके सबसे छोट दो पुत्र हैं। आत्म शुद्धि के लिए सदा वन में ही रहते हैं। आहार के लिए भी नगर में नहीं जाते। जैन चित्रकथा
SR No.033221
Book TitleChoubis Tirthankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy