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________________ ____84 बने जाप ही के समान हम भारत की पवित्र भूमि पर हुआ पूज्य अवतार तुम्हारा, विश्वासियों पर बिखरा था शांति प्रदायक प्यार तुम्हारा, कर न सके हम यद्यपि कुछ भी सेवा या सत्कार तुम्हारा, किन्तु न फिर भी भूल सकेंगे युग-युग तक उपकार तुम्हारा / जीवन के मिथ्यान्धकार में सूर्य किरण बनकर तुम आए, नव-प्रभात को उस वेला में मानस-कुंज सकल हर्षांए, तुमने जग हित अल्प आयु में दुरस्त ब्रह्मचर्य ब्रत धारा, गह कुटुम्ब का किंचित भी था मोह आपने नहीं विचारा। मोहमयी कुवासनाओं को तुमने पूज्य निकाल दिया था, निज शरीर को कठिन परीक्षा में निर्भय हो ढाल दिया था, ज्ञान सुधा के मधुर श्रोत की तुमने मंदाकिनी वहाई, हां प्रमाद की घोर नींद से तुमने सोती जाति जगाई। तुमसे ही इस जैन जाति ने यह प्रशस्त गौरव था पाया, तुमने ही तो जैन जाति का झंडा आगे आन उठाया, तमसे ही थी "धर्म दिवाकर" प्राची में गौरव की लाली, अलंकार से हीन जाति थी तुम ही से आभषण वाली। देश देश में घूम--घूम कर, तमने वीर संदेश सुनाया, बन्धु भाव का दिव्य ज्ञान दे प्रेमामृत का पान कराया, यद्यपि था प्रतिकूल स्वास्थ्य पर, व्यस्त कार्य में रहे निरन्तर, ज्यों-ज्यों कठिन परीक्षा होती त्यों-त्यों होते जाते दृढ़तर / तन कोमल जर्जर शरीर पर क र कर्म खुल खेल रहे थे, व्यथा व्याधि थी महाकठिन तम फिर भी निर्भय झेल रहे थे, मम्दभाव से कष्ट सहन करने में रहे समर्थ सर्वदा, कुटिल काल के शान्ति बिना शक्क रहे आक्रमण व्यर्थ सर्वदा। धैर्य देख तब धन्य ध्वनि मुख से निकल स्वयं जाती थी, धर्मध्यान की पूर्ण महत्ता स्वतः सामने दर्शाती थी, किन्तु धन्य के ही नारों से उऋण नहीं हम हो पायेंगे, होंगे उऋण चरण चिन्हों पर जब हम सब आगे आयेंगे। हे कवि | मैं तेरी प्रतिभा का तच्छ दास बनकर आया हूं। श्रद्धा से हृदयोद्गार के फूल गूंथकर मैं लाया हूँ, कलाहीन की यह श्रद्धान्जलि पूज्यपाद स्वीकार कीजिए, "बनें आप ही के समान हम" हमें सुखद आशीष दीजिये / / - स्व. फूलचन्द 'पुष्पेन्दु' लखनऊ
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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