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________________ 82 प्राणीमात्र के हितचिन्तक / आपकी अवस्था इस समय 57 वर्ष की है पर आपके शरीर को कान्ति और स्फूर्ति बरावर बढ़ती ही जाती है / आपका हृदय महषियों की तरह विश्वप्रेम से परिपूर्ण होकर भी संसार में अपनी पबित्र वाणी द्वारा श्री वीर भगवान का शान्ति सन्देश पहुंचाकर मनुष्य मात्र का हृदय जैन धर्म की भोर आकर्षित करना चाहता है। वास्तव में आप वीतराग भावों से ओतप्रोत होते हुए भी युवक हृदय रखते हैं / हमारी सवकी आन्तरिक भावना है कि आप दीर्घायु हों और चिरकाल तक आपके द्वारा जैन जाति, भारत और संसार का हित साधन होता रहे, और रत्नत्रय की साधना में आपकी लगन व दृढ़ता उत्तरोत्तर बढ़ती जाये / निःस्वार्थ समाजसेवी / ___ इस समय जब आप हमसे बिदा ले रहे हैं हमारा हृदय कृतज्ञतावेश से भरा आता है, संतोष इस बात का है कि आपने दयाभाव से दिसम्बर में दो ढाई महीने तक तीर्थ यात्रा में हमारी पथ प्रदर्शिता का आश्वासन दिया है / अतः अब मौनस्थ होते हैं / कहने को तो बहुत था, हमने जो कुछ कहा, थोड़ा कहा / आपके गुणानुवाद की हम में शक्ति ही नहीं / हम हैं आपके चिरकृतज्ञ लखनऊ जैन समाज के समस्त सदस्य
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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