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________________ 81 .महानुभाव ! हमें इसका भी अभिमान है कि आप में प्राच्य और पाश्चात्य भाषा ज्ञान का समन्वय है। अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत, पाली, प्राकृत, हिन्दी गुजराती, मराठी व बगाली भाषा की जानकारी से आप अखिल भारतवर्ष निवासियों, बल्कि आधुनिक ज्ञात दुनिया का उपकार कर रहे हैं। लंका (सीलोन) और ब्रह्मा (वर्मा) में काफी समय तक रहकर आपने बौद्ध : भिक्षओं से धर्म संबंधी विचार परिवर्तन भले प्रकार करके इन दोनों धर्मो की तुलनात्मक विवेचना प्रकट कर दी है। हमारे परम मित्र और धर्मबन्धु / पारस्परिक प्रेम मनुष्य का गुण, सामाजिक जीवन का जीवन है / आप योगी हैं, विरागी हैं, सप्तम प्रतिभाधारी हैं, किन्तु प्रेम प्रशंसासक्त नहीं है। अपनी जन्म भूमि से आपको प्रेम होना ही चाहिये। सन 1926 में आपने वहां चातुर्मास व्यतीत करके सेन्ट्रल जैन पब्लिशिंग हाऊस और अजिताश्रम जिनालय की स्थापना कराई और आपकी अध्यक्षता में चैत्यालय का वार्षिकोत्सव आशातीत सफलता से गत 6 अक्टूबर को हुआ / इस बर्ष गत चातुर्मास में लखनऊ जैन समाज को आपके अनुग्रह से असीम सामाजिक और धार्मिक लाभ हुआ / आपने कई विशेष पूजायें व प्रभावशाली यज्ञोपवीत संस्कार कराया / प्रति सप्ताह में एक बार और कभी अधिक वार सार्वजनिक व्याख्यान देकर सदर बाजार से गनेशगंज, अमीनावाद, डालीगज और सआदतगंज तक लखनऊ के हर मोहल्ले में आपने जैन सिद्धांतों का प्रचार किया और धर्म का महत्व जनता पर दीकर वास्तविक धर्म प्रभावना की / इतना ही नहीं, किन्तु आपने श्री महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के उत्सव में जैन मंदिर अहिल्यागंज से चौक के जैन मन्दिर तक श्री वीर भगवान का पवित्र झडा वड़े समारोह के साथ ले जाकर धर्म प्रभावना का एक नया अंकुर जमाया / कहाँ तक कहा आय, यहां की समाज के विशेष आग्रह से चातुर्मास संपूर्ण हो जाने पर भी बनारस से इन्दौर जाते समय भी सिद्धचक्र विधान पूर्ण सफलता पूर्वक आज ही समाप्त कराया है।
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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