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________________ रहेंगे, और हमें पूर्ण आशा है कि आपके द्वारा अन्य भी तारण स्वामी रचित ग्रन्थों का सरल भाषा में प्रकाश होगा / आप दिन रात आत्ममनन का ज्ञानाभ्यास में रत रहते हैं / आपने अपनी दिनचर्या से बता दिया है कि आप जीवन के समय का कैसा सदुपयोग करते है। यही कारण है कि जो आपने दिगम्बर जैन साहित्य में पचीस-तीस ग्रन्थों का सम्पादन करके महान उपकार किया है / आशा हैं कि आप चिरकाल जीवित रहकर धर्म का प्रचार और समाज का उद्धार करते रहेंगे। हम हैं, आपके श्रद्धालु तारण जैन समाज, इटारसी 2- जैन समाज, लखनऊ द्वारा 11-11-35 को समर्पितप्यारे पथ प्रदर्शक / लखनऊ नगर निवासी जैन जनता को यह वास्तविक अभिमान है कि आपका जन्म इसी लक्ष्मणपुर में कार्तिक बदी 8 वि० सं० 1835 को हुआ आपके प्रपितामह जैन अग्रवाल गोयल वंश श्रीयुत रायमल्ल जी गड़गाँव- दिल्ली प्रान्त से वाणिज्य करने के लिये लखनऊ आए। धन्य हैं आपके पज्य पिता श्री मक्खनलाल जी व माता श्रीमती नारायणी देबी जिन्होंने आप जैसा नर रत्न और धर्मोद्योतक पुत्र उत्पन्न किया / आपके ज्येष्ठ भ्राता लाला सन्तमल जी हमारे प्रतिष्ठित सहनागरिक हैं। आपने इसी नगर में प्राथमिक शिक्षा व धार्मिक संस्कार प्राप्त किये। कलकत्ता में रहकर आपने जवाहरात का काम सीखा और जैन सिद्धांत का अध्ययन किया / वहां से आकर आप रेलवे में जिम्मेदारी का काम करते रहे। सन 1905 में महामारी के प्रकोप से एक ही सप्ताह में आपकी माता, भ्राता, सहधर्मिणी का देहान्त हो गया। बचपन की भावना ने तीब्र वैराग्य रूप धारण किया और 27 वर्ष की युवावस्था में ही धन की लालसा, उच्च पद के प्रलोभन, मित्रों के सत्संग और कुटुम्बी जनों के ममत्व को त्यागकर आप बम्बई चले गए और फिर ब्रह्मचारी ब्रत में दीक्षित हुए।
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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