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________________ 78 दो अभिनन्दन पत्र पूज्य व्रहमचारी जी अभिनन्दन पत्रों आदि से बहुत बचते थे फिर भी अनेक स्थानों में उनके अभिनन्दन किये गये। नीचे दो उपलब्ध अभिनन्दन पत्र बा० अजितप्रसाद जी की पुस्तक "ब्रह्मचारी सीतल" से उद्धत किये जाते हैं क्योंकि उनसे ब्रहमचारी जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर भी अच्छा प्रकाश पड़ता है। 1- तारण जैन समाज, इटारसी द्वारा 20-10-33 को समर्पित श्रद्ध य गुरूवर्य, ___ जब से आपका इटारसी में आगमन हुआ तभी से इटारसी की जैन तथा अजैन जनता आपसे आत्मज्ञान पूर्ण उपदेशामृत को पान कर रही है, नित्य प्रति के उपदेशों द्वारा आपने केवल जैन समाज की ही पिपासा नहीं बुझाई बल्कि आप अपने सार्वजनिक साप्ताहिक भाषणों द्वारा अजैन भाईयों की श्रद्धा के पात्र भी बन गए हैं / आप वास्तव में अज्ञान और मोह के अन्धकार में डुवे हुए प्राणियों के "धर्म-दिवाकर" हैं। गुरूवर्य, आपने केवल उच्चकोटि के सरल समाचार पत्रों और गद्य साहित्य का ही भंडार नहीं भरा वरन् देश भर की धार्मिक संस्थाओं को प्रोत्साहन देकर ऐसे पंडित उत्पन्न होने में सहायता दी है जिन्हें जैनधर्म को संसार के धर्मों में श्रेष्ठ आसन दिलाने का श्रेय दिया जा सकता है और इसलिए आप जैनधर्म के वास्तविक आभूषण हैं / आपने केवल भारतवर्ष में ही नहीं वरन् भारत से दूर सीलोन और बर्मा जाकर बौद्ध धर्मावलम्बियों में भी जैन धर्म का डंका बजाया है और बौद्ध भिक्षुमों को जैन धर्म का प्रेम उत्पन्न कराया / आपने हमारी तारण समाज के भाइयों को कई दफे सेमरखेड़ी मल्हारगढ़, पधारकर व सागर में गत वर्ष वर्षाकाल में ठहरकर, व इस वर्ष यहां ठहरकर जो उपदेश का लाभ दिया हैं, व तारण-पंथ संस्थापक मंडलाचार्य श्री जिनतारण स्वामी द्वारा रचित श्रावकाचार व ज्ञान समच्चयसार का उत्थान करके जो उनके दिव्य उपदेशों को सरल भाषा में प्रकाश कर, हमको तत्वज्ञान का मार्ग बताया है, उसके लिए हम सदा आभारी
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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