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________________ बाबूजी के साथ जो-जो बातें मेरे सामने होती थी में उन्हें बड़े ध्यान से सुनता था। समाज-सुधार और अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्धी उनके विचार तो प्रकाश में आ ही चुके थे, परन्तु नारी जाति के सर्वागीण उत्थान पर उनकी धारणाए अत्यन्त प्रभावशाली और प्रखर थी। प्रत्येक आदमी के भीतर एक दूसरा आदमी रहता है, ऊपर का आदमी अक्सर परिस्थितियों का शिकार बन कर कुछ ऐसे कार्य करता है जो उसके आदर्शों के ही नहीं, उसकी अन्तरात्मा के भी सर्वथा विपरीत होते हैं। परन्तु अन्दर का आदमी सदा अपने मार्ग पर अग्रसर रहता है। हमारी सम्मति में वे ही गृहस्थ सच्चे गृहस्थ हैं जो कम से कम व्यक्तिगत जीवन में अन्तरात्मा की आवाज के साथ चलते हैं, परन्तु साधु का अन्दर का और बाहर का व्यवहार सर्वथा समान होना चाहिए। ब्रह्मचारी जी मेरी दृष्टि में एक सच्चे साधु इसलिये थे कि उन्होंने अन्तरात्मा की आवाज को स्पष्टतः पूर्वक संसार पर प्रकट कर दिया है / उन्हें न नेतृत्व की चाह थी और न कोई सांसारिक मोह था। वे एक सर्वथा वैराग्यमय पूरुष थे / जिन्होंने अपना जीवन जैन जाति के अभ्युत्थान में न्यौछावर कर दिया था और जिनका तप तथा त्याग अवश्य एक दिन संसार में अपना रंग लाकर रहेगा / श्री अक्षय कुमार जैन सन् 1923 में दिगम्बर जैन परिषद् की स्थापना हुई, मेरे पूज्य पिताजी श्री दीवान रूपकिशोर जैन परिषद् की स्थापना के समय दिल्ली में उपस्थित थे और वे भी परिषद के एक संस्थापक थे / वहां वह स्वनामधन्य ब्र० श्री शीतलप्रसाद जी के संपर्क में आए और उनके प्रगतिशील विचारों से प्रेरित हुए। परिणाम यह निकला कि 2 वर्ष बाद 8 दिसम्बर, 1925 को मेरी बड़ी बहिन श्रीमती शांतिदेवी (अब स्वर्गीय) का विवाह ब्रह्मचारी जी के सद्परामर्श से इन्दौर के सुप्रसिद्ध नेता बाबू सूरजमल जैन के मुँह बोले भाई श्री नेमीचन्द्र जैन के साथ सम्पन्न हुआ / उस समय जैनों में अन्तर्जातीय विवाह का चलन था ही नहीं / स्थितिपालक वर्ग उनका कड़ा विरोध भी करता था / इस प्रकार वह विवाह दो भिन्न जातियों में हुए विवाहों में
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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