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________________ अखिल भारतीय कांग्रेस के प्रायः सभी वार्षिक अधिबेशनों में वह उपस्थित रहे / जहां जाते, यह प्रयत्न करते कि सार्वजनिक सभाओं में उनके व्याख्यान हों, जिससे अजैन जनता भी उनका लाभ उठा सके। उनके व्याख्यानों में साम्प्रदायिकता को गन्ध नहीं होती थी। जनता के जीवन को धार्मिक एवं नैतिक बनाने पर , उसे सादा, सरल, सत्य एवं अहिंसा प्रतिष्ठित और स्वदेशप्रेम से ओत-प्रोत बनाने पर वह ही अधिक बल देते थे / ब्रह्मचारी जी देह-भागों से विरक्त, गृहत्यागी ब्रती थे। पारिभाषिक दृष्टि से भले ही वह मुनि या साधु नहीं कहलाए / किन्तु जनसाधरण उन्हें एक अच्छा जैन साधु मानकर ही उनका आदर एवं भक्ति करता था / वह भी अपने पद के लिए शास्त्रविहित चर्चा एवं नियम संयम का पूरी दृढ़ता के साथ पालन करते थे / जिन धर्म एवं जिनवाणी पर उनकी पूर्ण आस्था थी, किन्तु उन्होंने कभी भी किसी अन्य धर्म, पंथ या सम्प्रदाय की अवमानना नहीं की / सर्व-धर्म समभाव के पोषण के लिए जैनेत्तर धर्मो का भी उन्होंने तुलनात्मक अध्ययन किया / गुणियों के प्रति उनका असीम अनुराग था। स्व. गुरू मोपालवास जी बरैया का वह बड़ा आदर करते थे / स्थितिपालकों ने बनेक बार उनका प्रबल विरोध किया, उनके कार्य में अनेक बाधाए माली, धमकियां दी, किन्तु ब्रह्मचारी जी को वे क्षुब्ध न कर सके, उनके समभाव को विचलित न कर सके / ब्रह्मचारी जी को मान-सम्मान की चाह छ भी नहीं पाई थी। सामाजिक अभिनन्दनों, मानपत्रों उपाधियों आदि से वह सदैव बचते थे। अपने लिए उन्होंने कभी किसी से कोई चाह या मांग नहीं की, न अपने किसी कुटम्बी या रिश्तेदार के लिए ही, प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में भी / अपने नाम से कभी कोई संस्था स्थापित नहीं की, कहीं कहीं समाज ने चाहा भी, किन्तु उन्होंने ऐसा होने ही नहीं दिया। समाज के उस समय के प्रायः सभी श्रीमानों से ब्रह्मचारी जी का सम्पर्क रहा, किन्तु उनमें से किसी को भी कभी कोई खुशामद या चापलूसी नहीं की उनकी प्रशंस्तियां नहीं गायीं, उनके प्रभाव में आकर अपने विचारों में परिवर्तन भी नहीं किया, तथापि उनका सहज आदर प्राप्त किया। बम्बई के दानवीर सेठ माणिकचन्द जे० पी० तो उनके परम भक्तः.
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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