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________________ की आयु में ही वह सामाजिक क्षेत्र में उतर पड़े, जब उनका एक उद्घोषक लेख जैन गजट में प्रकाशित हुआ। 27 वर्ष की आयु में घर और गृहस्थी का परित्याग कर दिया और 32 वर्ष की आयु होते वह एक सच्चे जैन परिव्राजक बन गए / इस समय तक जैन नेताओं की प्रथम पीढ़ी चल रही थी। ब्रह्मचारी जी ने उनके सानिध्य में आकर समाज सेवा की एप्रेन्टिसी की ओर अपनी उत्कट लगन, अथक परिश्रम एवं निस्वार्थ सेवाभाव के कारण उन्होंने शीघ्र ही उक्त नेताओं का स्थान ले लिया। अगले 30 वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचारी जी सामाजिक प्रगति के प्रायः सभी क्षेत्रों पर छाए रहे / आवाल बृद्ध, स्त्री-पुरुष शिक्षित-अशिक्षित, सभी को उन्होंने प्रभावित किया / उत्तर-पश्चिमी सीमाप्रान्त से लेकर कन्याकुमारी ही नहीं, श्रीलंका पर्यन्त, और महाराष्ट्र-गुजरात से लेकर उड़ीसा-बंगाल और आसाम ही नहीं, वर्मा पर्यन्त उन्होंने भ्रमण किया / चातुर्मास के चार महिने ही वह किसी एक स्थान में व्यतीत करते थे, शेष 8 महिने निरन्तर स्थान-स्थान का भ्रमण करते रहते थे / कन्या विक्रय बृद्ध विवाह, अनमेल विवाह, बहु विवाह, सामाजिक बहिष्कार आदि कुरीतियों का निवारण, अन्तर्जातीय विवाह एवं विधवा-विवाह का समर्थन, बालकों, युवकों, प्रौढ़ों एवं स्त्रियों की शिक्षा का प्रचार, छात्रावास, पुस्तकालय, वाचनालय, बालाविश्राम, वनिताश्रम आदि संस्थाओं की स्थान-स्थान में स्थापना में प्रेरणा एवं योगदान, (सराकों जैसे पिछड़) उपबर्गों अथवा गौणता को प्राप्त समुदायों को नवजीवन प्रदान करना, खादी का प्रचार एवं जैन जनों में राष्ट्रीयता के विचारों का पोषण पत्र पत्रिकाओं का संपादन, अनगिनत लेखों और लगभग एक सौ छोटीबड़ी पुस्तकों की रचना, अनेक सम्पादकों, लेखकों एवं समाजसेवी कार्यकर्ताओं को प्रेरणा और उत्साह प्रदान करके कार्यक्षेत्र में लाना ब्रह्मचारी जी के जीवन क्रम के अभिन्न अंग थे। ऋषभ ब्रह्मचर्याधम, स्याद्वाद महाविद्यालय जैसी कई संस्थाओं के अधिष्ठाता के रूप में संचालन किया / जैन पुरातत्व की शोध खोज भी को। एक जैन विश्वविद्यालय की स्थापना भी उनका एक स्वप्न था / अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् के तो वह मल संस्थापक थे, और उसके मखपत्र "वीर" के आद्य संपादक थे / वह स्वयं तो पद्ध खादी का प्रयोग करते ही थे, नगर-नगर, गांव-गांव में स्त्री-पुरुषों को अपने लिये तथा जिन मन्दिरों में भी खादी के प्रयोग की प्रेरणा देते थे। (10)
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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