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________________ पुत्रीको माताका उपदेश &CREECREACHECREECRECTROCIEOCREACHECREOCHROCEXS (6) बेटी! यद्यपि आजकल लोकमें प्रायः बुरी कहावत चल रही है कि-सासूएं बहुओंको सतानेवाले दुर्बुद्धिनी और कठिन वचन कहनेवाली कर्कशा होती है। परंतु वह बात सर्वथा कल्पित (मिथ्या) है क्योंकि जो पुरुष स्त्री अपने पुत्रोंका, वंशकी रक्षा व सुखवृद्धिके अर्थ विवाह करता है, सो भला वह अपनी पुत्रवधूओंको कैसे दुःखी करेगा? कदापि नहीं। इसीलिये तू भी अपने अन्तःकरणको ऐसीर घृणित बातोंसे मलिन मत होने देना। (7) बेटी! स्मरण रख कि मीठे, नम्र और विनययुक्त वचन बोलनेसे प्रत्युत्तर भी मीठे नम्र वचनोंमें ही मिलता हैं। और कडुवे-कठोर वचनोका उत्तर कडुवे व कठोर वचनोंमें अर्थात् अपनेको अपनी प्रतिध्वनी (झांई-ECHO) सुनाई पड़ती है। इसलिये जो तू वहां (ससुरालमें) जाकर विनय विवेक हितमित प्रियवादिसे वर्ताव करेगी तो तेरी सम्पूर्ण मनोकामनायें पूर्ण होगी और जो दूसरोंका दिल दुखायेगी तो उसके बदले तुझे भी तिरस्कार सहना पड़ेगा। (8) बेटी! ससुरालमें जाकर अपने कुलकी लाज (मर्यादा) से रहना। और जो तेरे कर्तव्य हों, उन्हें भले प्रकार पूरा करना। सबसे हिल मिलकर रहना। यह दे दो, वह लादो, अमूक वस्तु आज ही लूंगी, वा अभी लूंगी, शीघ्र मंगा दो, इत्यादि कभी भी किसी प्रकारका कुछ हठ मत करना, और न कभी अपने घरकी कोई बात बाहर किसीसे कहना। कहा भी है तुलसी पर घर जायकर, दुख न कहिये रोय। नाहक भरम गमायके, दुःख न बांटे कोय॥ क्योंकि इससे अपने घरका भेद (भरम) खुल जाता है, और घरमें कलह बढ़ता है, जिससे अपना चित्त सदैव व्याकुल रहता है
SR No.032878
Book TitleSasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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