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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [37 EXSEXSEXTECRECTECHECRECTECEMBEXTRICT स्थानोंमें व पेटमें पीलापनका होना, अरुचि रहना इत्यादि। ये सब रोग तुम्हारी पाकशालामेंसे ही निकलते हैं। इसलिये सादा और प्रकृति अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाना चाहिये। (14) प्रायः लोगोंसे बलात्कार खींचतान करके अधिक भोजन खिलानेकी कुचाल पड़ रही है। इससे हितके बदले वह अन्न सन्न ( अजीर्ण आदि बिमारी) उत्पन्न करके उल्टा अहित कर देता हैं। इसलिये अधिक खींचतान किये बिना, इच्छा प्रमाण भोजन करना व कराना उचित है, परंतु जैसे खींचतान नहीं करना वैसे भूखा भी नहीं रखना चाहिये। क्योंकि बहुतसे लोग संकोचवश भूखे भी रह जाते हैं इसलिये उनसे अवश्य बारम्बार पूछना चाहिये, और जिनकी प्रकृति और भोजनका अंदाज तुम्हें मालुम हो उनको आग्रह न करके विचारके साथ ही परोसना चाहिये। (15) बहिनों! तुम घरका भूषण और अन्नपूर्णा हो, तुम्हारे सिवाय कोई लकड़ी, पत्थर, धातु व मिट्टीकी मूर्तिका नाम अन्नपूर्णा, लक्ष्मी, गृहदेवी, या कुलदेवी नहीं है। तुम्हारे हाथमें पुरुषोंकी जीवनडोरी हैं, इसलिये तुम सच्ची गृहिणी बनों। स्वयं उत्तम मार्गका अवलम्बन करती हुई रानी चेलना आदिके समान अपने पति व अन्य पुरुषोंको भी सन्मार्गी बनाओ यही तुम्हारा मुख्य कर्तव्य है। (16) घरमें यदि कर्मवश कोई बीमार पड़ जावे तो तुम तुरंत हौशयारी, प्रेम, दया और उत्साहसे उसकी सेवा टहल करने में लग जाओ। यह काम प्रायः हर जगह दवाखानों (होस्पिटलों औषधालय) में परिचारिका (नर्स) ही करती हैं कारण पुरुषोंसे स्त्रियोंका स्वभाव सहज ही नम्र व दयालु होता है, इसलिये घरमें तुम्हें परिचारिका हो। तुम्हें इस कार्यमें निपुण होना चाहिये। और इस विषयकी पुस्तक पढ़कर तत्संबंधी ज्ञान प्राप्त करना तुम्हारा कर्तव्य है
SR No.032878
Book TitleSasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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