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________________ [35 पुत्रीको माताका उपदेश ESEXSEXERCTCHECEOCEDURESCRECECKeXos (7) घर में खाने पीनेकी वस्तुएं अपने आप नित्य शुद्ध (संशोधन) करना यह तुम्हारा मुख्य कार्य है, क्योंकि बाजारसे जो सामान आता है उसमें प्रायः धूल, मिट्टी, कंकर, भूसी, भूसाकी लेंडी तथा और भी ऐसी बहुतसी हानिकारक अपवित्र वस्तुएं मिली रहती हैं। अथवा घरमें रखा हुआ अनाज आदि भी घुन जाता है। उसने लट, कुन्थु आदि जीव पैदा हो जाते हैं। कीडी मकोडिया चढ़ जाती हैं। ऐसी दशामें विना शोधे, बीने, दलने, पीसने, कूटने, रांधने व खानेसे तुरंत रोग उत्पन्न हो जाता है। इसलिये जहांतक हो सके बाजारू चीजें बीना धोये, सुखाये काममें मत लाओ। (8) रसोई तैयार करनेमें भी स्वच्छताकी आवश्यकता है। रसोई बनाने व खानेके बर्तन बिलकुल साफ मांजना चाहिये क्योंकि उनमें थोडी भी झूठन रह जानेसे बहुतसे जीव उत्पन्न हो जाते हैं। और भी फिर जन्तू भोजनके साथ खानेवालोंके पेटमें जाते हैं, जिससे अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। उच्च जातिके लोगोंमें जहां खानपान व चौका आदिकी सुघडता व स्वच्छता होती है वहां बीमारी भी कम होती है। (9) पकाया हुआ अनाज बहुत जल्दी बिगडने लगता है, इसलिये वासी भोजन नहीं रखना न किसीको खिलाना। नरम वस्तुएं कि जिनमें पानीका भाग अधिक होता है, जल्दी चलितरस हो जाती हैं, इसलिये ऐसी वस्तुयें तुरंत तैयार करके खाना व खिलाना चाहिये। तैयार किये हुए भोजनके पदार्थ कभी उघाडे नहीं रहने देना चाहिये, क्योंकि मक्खी आदि जीव अपने मुंह व पांखों द्वारा अनेक अपवित्र और विषैले पदार्थ लाकर भोजनमें छोड़ देते हैं। चौके में सफाई रखनेसे मक्खियां वहां नहीं आवें, इस प्रकारसे प्रबंध रक्खो।
SR No.032878
Book TitleSasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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