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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [23 40638063CSECSOCSO CSDD CSDD CSDD CSDD CSDD CSDD CSDDOS क्योंकि तू उनसे जितना द्वेष व घृणादि करेगी वे तुझसे उतने ही दूर होते चले जायगे और व्यसनोंमें फसते जायगे। "देख कभी गरम लोहा गरम लोहेसे नहीं कटता हैं, किन्तु ठण्डेसे ही कटता है" ऐसा जानकर तू क्षमा व शांति धारण करना तथा उस अवसरमें पहिलेसे भी अधिक प्रेम बढ़ाना ताकि उन्हें तेरी ओरसे शंका न होने पावे, और सुअवसर देखकर मृदु हास्य वचनों में तू उनके वे वाक्य जो उन्होंने तेरे मांगनेपर तेरा पाणिग्रहण करनेके समय दिये थे, स्मरण करा दिया करना बस यही उनको सुमार्गमें लानेका सच्चा उपाय है। परंतु बेटी! मैं तुझे निश्चयपूर्वक कहती हूँ कि जो स्त्रियाँ अपने पतिकी तन मनसे सेवा करती और अन्तःकरणसे उनपर सच्चा प्रेम रखती हैं। तो पति भी उन्हें प्राणेश्वरी देवी करके हृदयस्थ कर लेते हैं। देख सीता सती पतिव्रता थी तो रामचंद्र भी स्त्रीव्रता थे। जब सीता हरी गई तो उसके वियोगसे पागल हो गये थे। तू यह न जान कि रामने सीताको वनमें छोड़ा था, और अग्नि प्रवेश कराया था, उससे उनका सीतापर कुछ प्रेम कम हो गया था। नहीं बेटी, वे राजा थे, इसलिये उनको प्रजाके संदेह निवारणार्थ सीतापर अपने प्राणोंसे भी अधिक प्रेम करते हुए और उन्हें सती जानते हुए भी वनवास और अग्निप्रवेश लाचार हो करना पड़ा था। पवनञ्जय, सुखानंद, जयकुमार आदि बहुत महापुरुषोंके चरित्र पुराणोंमें भरे पडे है, जिनसे विदित होता है कि पुरुष भी अपनी सती सुशीला स्त्रियोंको देवी करके मानते हैं। यदि स्त्री चाहे, तो अपने पतिको अपनी सेवा तथा प्रेमसे सुमार्गी और द्वेष कलह इत्यादिसे कुमार्गी बना सकती हैं। सो हे मेरी दुलारी बेटी! तू उन्हें प्राणेश्वर देव करके ही प्रेम भक्ति व सेवा करना।
SR No.032878
Book TitleSasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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