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________________ (15) .. "यः खलु जिनेन्द्रवदनारविन्दविनिर्गतपरमाचारशास्त्रक्रमेण सदा संयतः सन् शुभोपयोगे चरति, व्यावहारिकधर्मध्यानपरिणतः अत एव चरणकरणप्रधानः, स्वाध्यायकालमवलोकयन् स्याध्यायक्रियां करोति, दैनं दैनं भुक्त्वा भुक्त्वा चतुर्विधाहारप्रत्याख्यानं च करोति, तिसृषु संध्यासु भगवदर्हत्परमेश्वरस्तुतिशतसहस्त्रमुखरमुखारविन्दो भवति, त्रिकालेषु च नियमपरायणः इत्यहोरात्रेऽप्येकादशक्रियातत्परः पाक्षिकमासिकचातुर्मासिक सांवत्सरिकप्रतिक्रमणाकर्णनसमुपजनितपरितोषरोमांचकंचुकितधर्मशरीरः, अनशनावमौदर्यरसपरित्यागवृत्तिपरिसंख्यानविविक्तशय्यासनकायक्लेशाभिथानेषु षट्सु बाह्यतपस्सु च संततोत्साहपरायणः, स्वाध्यायध्यानशुभाचरणप्रच्युतप्रत्यवस्थापनात्मकप्रायश्चित्तविनयवैयावृत्त्यव्युत्सर्गनामधेयेषु चाभ्यन्तरपोनुष्ठानेषु च कुशलबुद्धिः, किन्तु स निरपेक्षतपोधनः साक्षान्मोक्षकारणं स्वात्माश्रयावश्यककर्म निश्चयतः परमात्मतत्त्वविश्रान्तिरूपं निश्चयधर्मध्यानं शुक्लध्यानं चं न जानीते, अत: परद्रव्यगतत्वादन्यवश इत्युक्तः / " अर्थ - जो (महाव्रती) वास्तव में जिनेंद्र के मुखारविन्द से निकले हुए परम आचारशास्त्र के क्रम से (रीति से) सदा संयत रहता हुआ शुभोपयोग में प्रवर्तता है; व्यावहारिक धर्मध्यान में परिणत रहता है इसीलिये चरणकरणप्रधान है (शुभ आचरण के परिणाम जिसको मुख्य हैं, ऐसा); स्वाध्यायकाल का अवलोकन करता हुआ (स्वाध्याय योग्य काल का ध्यान रखकर स्वाध्याय क्रिया करता है, प्रतिदिन भोजन करके चतुर्विध आहार का प्रत्याख्यान करता है, तीन संध्याओं के समय (प्रातः, मध्यान्ह, तथा सायंकाल) भगवान् अर्हत् परमेश्वर की लाखों स्तुति मुखकमल से बोलता है, तीनों काल नियम परायण रहता है। इस प्रकार अहर्निश (दिनरात) ग्यारह क्रियाओं में तत्पर रहता है, पाक्षिक, मासिक, चातुर्मासिक तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण सुनने से उत्पन्न हुए सन्तोष से जिसका धर्मशरीर रोमांच से छा जाता है; अनशन, अवमौदर्य, रसपरित्याग, वृत्तिपरिसंख्यान, विविक्त शय्यासन और कायक्लेश नाम के छह बाह्यतपों में जो सतत उत्साह परायण रहता है; स्वाध्याय, ध्यान, शुभ आचरण
SR No.032868
Book TitleNijdhruvshuddhatmanubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar, Lilavati Jain
PublisherLilavati Jain
Publication Year2007
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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