________________ तथा कन्नड़ लिपि में हैं। इन लेखों में जैनाचार्यों के संघ, गण, गच्छ, पट्टावली के रूप में धार्मिक इतिहास का उल्लेख तो है ही, तत्कालीन सांस्कृतिक और राजनैतिक स्थिति का भी विस्तार से वर्णन है। राजवंशों और उनके प्रमुख व्यक्तियों, उनकी सामरिक विजय, विरुदावली, धर्मनिष्ठ श्रावकों तथा उनके कार्यों, धर्मस्थानों के संरक्षण, भूमि, प्रामादि दानों का भी उल्लेख हुआ है। श्रवणबेलगोल के इन अभिलेखों में अनेक छोटे-बड़े आचार्यों, उनके द्वारा रचित आगमिक और साहित्यिक कृतियों, आचार्यों के जीवन की विशिष्ट घटनाओं, आश्रय देने वाले राजाओं, श्रेष्ठियों आदि का उल्लेख हुआ है। सभी आचार्यों का परिचय इस लघु लेख में देना सम्भव नहीं है, अत: कुछ विशिष्ट आचार्यों का परिचय इस आलेख में दिया जा रहा है जिनमें प्रमुख हैं- आचार्य धरसेन, आचार्य पुष्पदन्त और भूतवली, आचार्य कुन्दकुन्द, आचार्य वट्टकेर, आचार्य समन्तभद्र, आचार्य सिद्धसेन, आचार्य रविषेण, आचार्य अकलंकदेव, आचार्य जिनसेन, आचार्य विद्यानन्द, आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, आचार्य प्रभाचन्द्र, आचार्य गुणभद्र, आचार्य वादिराज, आचार्य वीरसेन, आचार्य देवसेन। भारतीय संस्कृति के विकास में इन आचार्यों की देन अनुपम है। इनके अध्ययन से जैन-साहित्य और संस्वति के नये क्षितिज उद्घाटित होंगे, ऐसी आशा है। -124