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________________ 33 ध्यान-द्वात्रिंशिका पिता-पुत्र प्रादि की तरह कथञ्चित् अभिन्न भी हैं। तात्पर्य यह है कि पुत्र के बिना पिता का और पिता के बिना पुत्र का निरूपण करना संभव नहीं है। अतः वे कथञ्चित् अभिन्न भी हैं। इस प्रसंग में अभिधर्म कोष-भाष्य (1.42) का निम्नोक्त पाठ तुलनीय है चक्षुहि प्रतीत्य रूपाणि चोत्पद्यते चक्षुर्विज्ञानम्। तत्र क: पश्यति को वा दृश्यते / निर्व्यापार हीदं धर्ममात्रं हेतु फलमानं च / यहां चक्षु, रूप एवं चक्षुर्विज्ञान-इन तीनों का परस्पर समुत्थान बताया गया है / एकस्मिन् प्रत्ययेऽष्टांगकर्मसामर्थ्यसंभवात् / नानात्वंकपरीणामसिद्धिरष्टौ तु शक्तितः // 10 // एक ही हेतु (कर्मरूप प्रत्यय) में अष्टविध कर्म उत्पन्न करने का सामर्थ्य है। अतः एक ही कर्म अनेक भी है, एक भी है। अपनी विभिन्न शक्तियों के कारण वह अष्ट प्रकार है। नाहमस्मीत्यसद्भावे दुःखो गहितैषिता। न नित्यानित्यनानक्यकर्ताद्येकान्तपक्षतः // 11 // "मैं हूं'– इस प्रत्यय से स्वतःसिद्ध आत्मा का अस्तित्व यदि अस्वीकार किया जाए तो संवेग और मोक्षाभिलाष व्यर्थ हैं तथा आत्मा को एकान्त रूपेण नित्य, अनित्य, एक, अनेक, कर्ता अथवा अकर्ता प्रादि मानने पर भी संवेग एवं मोक्षाभिलाष निष्प्र. योजन हैं। प्रायः ऐसी ही युक्ति के आधार पर एक बौद्ध दार्शनिक ने आत्मवादियों के अात्मसिद्धान्त की उत्पत्ति का निरूपण करते हुये लिखा है सुखी भवेयं दुःखी वा मा भुवमिति तृष्यतः / यैवाहमिति धीः सैव सहजं सत्त्वदर्शनम् / / न ह्यपश्यन्नहमिति कश्चिदात्मनि स्निह्यति / -प्रमाणवातिक I. 202-3. मैं सदैव सुखी रहूं, कभी भी दुःख मुझे स्पर्श न करे- ऐसी तृष्णा से अभिभूत व्यक्ति सहज ही शाश्वत आत्मतत्त्व मान बैठता है। प्रात्मा को देखे बिना कोई. आत्मा में स्नेहासक्त नहीं बनता। तात्पर्य यह है कि प्रात्मवादी सहज ही तृष्णाभिभूत हो जाता है। इस पर सिद्धसेन दिवाकर का कहना है, इस सहज आत्मसिद्धि को मानने पर ही बौद्धों द्वारा स्वीकृत दुःख-दर्शन एवं निर्वाण की सार्थकता सिद्ध हो सकेगी। उत्पत्तेरेव नित्यत्वमनित्यत्वं च मन्यते / प्रतीत्यसंविद्भावस्तु कारकेषूपनीयते // 12 //
SR No.032865
Book TitleJaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages170
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size12 MB
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