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________________ 68] ऐतिहासिक स्त्रियाँ नहीं दिया तब वह बलात्कार उसका सतीत्व भंग करनेके लिए उद्यत हुआ। वह महापतिव्रता अबला राजकुमारी रयनमंजूषा अपना सर्वस्व खोया समझ और सिवाय उस चिदानन्द अनन्त शक्तिवान परमात्माके कोई इस दुःखसे छुटकारा करनेवाला न जान प्रार्थना करने लगी-- ___"हे प्रभो! यह नीच मुझ अबलाका सर्वस्व हरण करनेके लिए उद्यत हुआ है, शीघ्र मेरी रक्षा कीजिये। अबलाके सतीत्वकी रक्षाके लिए शीघ्र दैवी शक्तिने प्रगट होकर अपनी अखण्ड शक्तिसे धवलसेठको मूर्छित कर दिया। और उसे अनेक प्रकारके दुःख देकर अपने कियेका पूर्ण फल दिया। अब धवलसेठको ज्ञात हुआ कि पतिव्रता नारियोंमें कितनी शक्ति होती है और उनका तेज क्या नहीं कर सकता है। उसने अपने दुष्कृत्योंके प्रायश्चितके लिये परमेश्वरकी स्तुति की और राजकुमारीसे भी क्षमाकी प्रार्थना की। उस समयसे धवलसेठकी बुद्धि ठीक हुई और फिर रयनमंजूषाको किसी तरहका मानसिक शारीरिक दुःख देने तकका उसने विचार नहीं किया। ___ यहां राजा श्रीपाल काठके तखतेपर बैठ तैरते२ अपने पुण्य कर्मोके प्रतापसे कुंकुंमद्वीपके किनारे समुद्रसे पार हुए। किनारे पर वहांके राजाके बहुतसे कर्मचारी इसलिए पहरा दे रहे थे कि उसकी राजकुमारी गुणमालाका पाणिग्रहण वही पुरुष करने को समर्थ है, जो समुद्रमें बाहुबलसे तैरता हुआ किनारे आवेगा। तदनुसार कर्मचारियोंने राजा श्रीपालको आदरसत्कारसे ले जाकर राजाके निकट उपस्थित किया। राजाने प्रसन्न होकर अपनी प्यारी पुत्रीका विवाह श्रीपालसे कर दिया और श्रीपाल अपने भाग्यके चमत्कार पर आश्चर्य करते हुए नववधुके साथ आनन्दपूर्वक रहने लगे।
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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