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________________ 66] ऐतिहासिक स्त्रियाँ श्रेष्ठ समझा और साथ चलनेको उन्नत हुई। अंतमें राजा श्रीपाल और रानी रयनमंजूषा दोनों प्रतापी धवलके जहाजमें बैठकर विदेशको प्रस्थानित हुए। ___अथाह समुद्रके पृष्ठ भाग पर लक्ष्मीवान धवलसेठका जहाज वायुवेगसे चला जा रहा था। ऊपर आकाश और नीचे पानीके सिवाय चारों ओर कुछ भी दिखाई नहीं देता था। जहाजके सब यात्री अपने अपने कार्यमें मग्न थे। यकायक धवलसेटकी कुटिल दृष्टि सुकुमारी राजकुमारी रयनमंजूषा पर पडी। रयनमंजूषाके रूप, यौवन, कोमलता आदि सराहनीय गुणों को देखकर धवलसेठको कामदेवके तीक्ष्ण शरोंका निशाना बनना पड़ा। बुद्धि नष्ट हो गई और कुवासनाने उसके हृदयपर अपना पूर्ण आधिपत्य जमा लिया और उसकी पूर्तिके लिए वह प्रयत्न सोचने लगा। उसने विचार किया कि अगर श्रीपालको इस पर्यायसे मुक्त कर दें तो रयनमंजूषा मेरे हाथ आ सकती है। इस कुटिल विचारको कार्यरूपमें परिणत करनेके लिए उस नष्टबुद्धि दुराचारी धवलसेठने शीघ्र ही राजा श्रीपालको समुद्रमें गिरवा दिया और कृत्रिम दुःख प्रकाशित करने लगा। राजा श्रीपाल सब कारण समझ स्थिर चित्तसे परमेश्वरका नाम स्मरण करने लगा। सौभाग्यसे कुछ देरके पश्चात् उन्हें एक काठका तख्ता बहता हुआ मिल गया, उसीपर वह बैठ गये। अपने जीवनके बचनेकी आशा समझकर उन्होंने चिदानन्द अविनाशी परब्रह्म परमात्माको कोटिशः धन्यवाद दिया और उन्हींका स्मरण करते हुए बहते चले। ____ यहां जब कोमल चित्त सुशीला राजकुमारी रयनमंजूषाको अपने पतिके समुद्रमें गिरनेका हाल ज्ञात हुआ वह तुरंत मूर्छित
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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