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________________ 60] __ ऐतिहासिक स्त्रियाँ राजकुमार भी अपनी कुवासनाको तृप्त करनेके लिये शीघ्र आ पहुंचा। परंतु शीलकी महिमासे दैवीशक्तिने प्रगट होकर राजकुमारको उठाकर गचपर पछाड़ दिया जिससे वह मूर्छित हो गया। मूर्छासे जागने पर अपने किये पर बहुत पछतावा करने लगा तथा इसके प्रायश्चितके लिये कुमारीसे हाथ जोड़कर क्षमाकी प्रार्थना की, कुमारीकी आज्ञानुसार राजकुमारने उसको उसी स्थान पर छोड़ दिया जिस स्थानसे कि उसे लाया था। इस प्रकार सुन्दरी ईश्वरको शतशः धन्यवाद देती हुई उसी भयानक जंगलमें आई और फिर अपने जीवनके दिन व्यतीत करने लगी। भाग्यवशात् उस जंगलमें काशीका धनिक सेठ धनदत्त व्यापार करता हुआ निकला। कुमारीका रोदन सुन उसे विषद्सागरमें फंसी देख सेठजीने उससे उसका सब हाल पूछा। कुमारीने अपनी आरम्भसे अन्त तकको सब दुःखमय कहानी सुनाई। सेठ धनदत्तने उस पर बहुत दुःख प्रगट किया तथा कुमारीकी अपनी भांजी बतलाकर अपने घर काशीको ले गया तथा सुखपूर्वक रखा। ___ यहां सुखानन्दकुमार जब व्यापारमें अपनी विलक्षण बुद्धिसे आशातीत सफलता प्राप्त कर अपनी जन्मभूमि वेजयन्तीनगरीको लौट आ रहे थे तब नगरसे थोडी दूरी पर उनकी अपनी प्राणप्यारी सहधर्मिणीके झूठे कलंकित होकर निकाले जानेका दुःखद समाचार मिला। यह समाचार सुननेसे इनको मूर्छा आ गई। जागृत होने पर अपना सामान पिताजीकी सेवामें समर्पण करनेके लिए अपने साथियोंको सौंपकर योगीका भेष रखकर ये अपनी गृहलक्ष्माकी खोजमें निकले। खोजते२ ये राजगृही
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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