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________________ वीर नारी रानी द्रौपदी [43 द्रौपदीजीसे कहा कि तुम कीचकसे आज रात्रिकों किसी स्थान पर आनेका संकेत कर दो। बस, जब वह दुष्ट वहां आयेगा मैं स्त्रीके भेषमें उसे जा पछाडूंगा। द्रौपदीजीने ऐसा ही किया। रात्रिके समय कीचक पापात्मा उत्कटतासे नियत स्थान पर गया। वहां कृत्रिम द्रौपदी-(भीम) ने उसे धर पछाड़ा, उसके घृणित मनोभावका प्रत्यक्ष फल दिखला दिया। __ अपना काम कर (कीचकको मार) भीम स्वस्थानको आ गये और द्रौपदीजीसे सब वृत्तांत कह सुनाया। प्रातःकाल कीचकको द्रौपदीके कारण मरा जान उसके सौ भाईयोंने बड़ा दंगा मचाया। द्रौपदीजीको पकड़कर त्रास देना शुरू किया। यह देख भीम महाराजने फिर युद्ध किया और कीचकके सब भाईयोंको हरा दिया। __ अबके युद्धसे सबको थोड़ा थोड़ा पता लग गया कि ये पांडव हैं। इधर इन लोगोंका 1 वर्ष भी पूरा हो गया था। ये प्रगट होना ही चाहते थे कि कौरवोंने फिर युद्ध किया। अंतमें पांडवोंकी ही जीत हुई और जय-पताकाके साथ फिर इन लोगोंने अपने पुरमें प्रवेश किया। कुछ दिन पति आदि समस्त कुटुम्बियोंके साथ सानन्द व्यतीत होने हो पाये थे कि सती द्रौपदीको एक विपत्तिका फिर सामना करना पड़ा। ___ एक दिन रानी द्रौपदी सिंहासनपर बैठी थी कि नारदजी आये। उनको देखकर द्रौपदीजी उठ न सकी और न प्रणाम ही किया। वे अपने श्रृंङ्गारमें लगी थी। ___ यह बात नारदजीको बहुत बुरी लगी। वे शीघ्र ही वहांसे लौट गये और मनमें द्रौपदीजीको नीचा दिखानेका विचार करके घातकी खण्डस्थ सुरककापुरीके राजा पद्मनाभके यहां जाकर उसे द्रौपदी रानीका चित्र दिखा दिया। इस कौतुकको
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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