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________________ 42] ऐतिहासिक स्त्रियाँ इतने सुन्दर सुडौल बनते थे कि राजा सुदर्शनकी महिषी चकित हो जाती थी। सोचती थी कि यह चतुर मालिनी कौन है? एक दिन राजाका साला कीचक पाहुना आया था। वह द्रौपदीजीके बने पुष्पहारको देखकर चकित हो गया। उसी समय उसके हृदयमें कुविचारोंने आवागमन जारी कर दिया। अंतमें द्रौपदीजीको उसने देखा और उनपर मोहित हो गया। उस दुष्ट एकांतमें द्रौपदीजीसे प्रार्थना की कि आप मेरी पट्टरानी बनने योग्य हैं, मेरे साथ चलिये, मुझ पर प्रसन्न हूजिये, इत्यादि दीनताके वचन कहें तथा भय भी दिखाया। इस दुष्टके उपर्युक्त वचनोंको सुनकर द्रौपदी सतीके हृदय पर वज्राघातसे भी अधिक चोट पहुंची। वह विचारने लगी कि अहो! यहां पर भी चैन न मिली। किस तरह शीलरत्नकी रक्षा होगी, इत्यादि विचारोसे उक्त सतीका हृदय कंपित हो गया, परंतु समय पड़ने पर अबला सबसे सबला हो सकती है, इस वाक्यानुसार द्रौपदीजी सचेत होकर कीचक दुष्टको झाडने लगी। उन्होंने तीव्र क्रोधमें आकर कीचकको खूब आड़े हाथों लिया, खूब कटु वचनोंकी बौछार की जिससे कीचक निराश हो स्वस्थानको लौट गया। कीचक दुष्ट उसी दिनसे खान-पानादि छोड अपनी महानिंद्य वासनाकी पूर्तिके उपाय सोचता हुआ शय्यापर दिन काटने लगा। ___ इधर द्रौपदीजीने अर्जुनसे अपनी अपार दुःखावस्थाका वर्णन किया जिससे उनको बड़ा क्रोध उपजा, परंतु भेद खुलने पर अपना छिपाना दुःसाध्य जानके चुप रह गये और यह सुनकर झोपदीजीको धैर्य बधाने लगे। द्रौपदीजीको पतिके कहनेसे धैर्य नहीं हुआ, उन्होंने भीम महाराजसे सब वृत्तान्त कहा। भीमने दहा कि-सती! तुम पश्चाताप मत करो। हम अप्रगट रूपसे ह' कीचक दुष्टसे बदला लेंगे। उन्होंने एक युक्ति निकाली यानी
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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