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________________ श्रीमती मैनासुन्दरी [33 न हो, इसलिये चाचा वीरदमनको राज्यभार सौंप राजधानी छोड़ जंगल जंगल भटकता हुआ वहां ठहरा था। उसके शरीरकी दुर्गधि चारों ओर फैल रही थी। राजा पहुपाल राजा श्रीपालके अनुचरोंसे यह सब हाल जानकर अपनी कनिष्ट पुत्री मैनासुन्दरी के भाग्यरूपी गर्वका बदला चुकानेका अच्छा अवसर आया जान शीघ्र श्रीपालके पास गया और आदर सत्कारके पश्चात् कृत्रिम प्रसन्नता प्रगट कर अपनी सुकुमारी पुत्री मैनासुन्दरीको देनेका संकल्प कर उसका टीका कर दिया। राजा श्रीपाल उसका भेद न समझ बहुत प्रसन्न हुआ। ___यहां राजा पहुपालने राजाप्रासादोंमें आकर सुन्दरीको उसके भाग्यकी प्रबलताका पराजय रुप यह समाचार सुनाया परंतु सुन्दरीने यह सहर्ष स्वीकार किया और शीघ्र अपने स्वामीसे मिलनेके लिये उत्कण्ठित हुई। उसको किसी तरहका भी संकल्प विकल्प नहीं हुआ। राजा पहुपाल राजकुमारीकी यह कृति देख और भी रुष्ठ हुआ। राजमर्हिषी प्रधान-मंत्री, प्रधान सेनापति, राजपुरोहित आदिके समझानेपर भी राजाने कुछ ध्यान न दें क्रोध व अहंकारसे उन्मत्त होकर शीघ्र ही शुभ तिथिमें कुमारीका विवाह उस कुष्ठ रोगसे कुरुप हुए राजा श्रीपालसे कर दिया। कुमारीने अपने पिताकी आज्ञाको शिरोधार्य कर इस अयोग्य राजा श्रीपालको अपना स्वामी बनाया। ___ उज्जैनके प्रजाजन इस संबंध पर बहुत असन्तुष्ठ हुए तथा उन्होंने राजाको बहुत धिक्कारी। अंतमें जब सुकुमारी सरला रामकुमारी मैनासुन्दरी रोगसे कुरुप पतिके साथ अपने महलसे विदा होकर पतिके स्थानको जाने लगी तब तो राज पहुपालके ज्ञानचक्षु खुल गये। उन्होंने अपने किये पर बहुत पछतावा किया और सुन्दरीसे क्षमा देनेकी प्रार्थना की। कुमारीने अपने भाग्यका
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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