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________________ श्रीमती सीताजी [17 हिंसक जंतुओंसे पूर्ण वनमें असहाय होकर भ्रमण करे!!! कर्मोकी गति बड़ी विचित्र और दुर्निवार है। यह कर्मोका ही माहात्म्य है, जो महा सती सीताको इन असह्य आपत्तियोंको सहन करना पडा। अस्तु, सीताको छोड़कर कृतान्तवक्रने जाकर रामचंद्रसे सब वृतान्त कह सुनाया और वह संदेशा भी सुनाया जो सीताने आते समय कह दिया था। रामचंद्र गुणवती सीताके गुणानुवाद कर अपने दिन बिताने लगे। इधर एक दिन वज्रजंघ राजा हाथीको पकडनेके लिए उसी वनमें आया था, उन्हें सीताको देखकर दया आई, उसे धर्मकी भगिनी मानकर अपने घर ले गया और सुखसे रक्खा। सीता अपने दिनोंको सुखसे बिताने लगी। नौ महीने पूर्ण होने पर सीताके लव और कुश नामक महा शूर दो पुत्रोंकी उत्पत्ति हुई। यह दोनों पुत्र बड़े हुये। ___ एक दिन देवयोगसे सिद्धार्थ नामक क्षुल्लक वहां आये। क्षुल्लकजीने इन बालकोंको होनहार देखकर शास्त्र और शस्त्र विद्यामें अति निपुण कर दिया। एकबार इन दोनों कुमारोंको देखनेके लिये कलह-प्रिय नारद आये और आकर इन दोनों पुत्रोंको आशीर्वाद दिया कि तुम दोनों भाई राम और लक्ष्मणकी तरह समृद्धिशाली होओ। कोतुकी बालकोंसे रहा न गया और उन्होंने पूछ ही लीया कि महर्षि! वे राम और लक्ष्मण कौन है? उनका सब वृत्तान्त हमसे कहो। तो नारदने सीताके हरणसे लेकर त्याग पर्यंतका सब वृत्तान्त सुनाया। पिताकी कृतिपर दोनों बालकोंको क्रोध आया और अयोध्याको प्रयाण किया। थोड़े ही दिनोंमें अपनी चतुरंगिणी सेनाके साथ महायोद्धा दोनों भाई अयोध्यामें पहुंच गये और लक्ष्मणके पास दूत भेजा। दूतने आकर कहा--
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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