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________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [27 शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिनपूजा . दोहा जन्म लग्न गोचर समय, रवि सुत पीड़ा देय। तब मुनिसुव्रत पूजिये, पातक नाश करेय॥ - अडिल्ल छन्द मुनिसुव्रत जिनराज काज निज करनको। सूर्य पुत्र ग्रह क्रूर, अरिष्ट जु हरनको। .. आह्वानन कर तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः करो। होय सन्निधि जिनराय, भव्य पूजा करो॥ ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् / - अथाष्टक (चाल कातक) .... प्राणी गन्धोदक ले सीयरो, निर्मल प्रासुक ले नीर हो। प्राणी झारी भर त्रय धार दे,जासे कर्म-कलंक मिटाय हो। व प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। .. ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा। प्राणी चंदन घिस मलियागिरी, अरु कुम कुम तामें डार हो। प्राणी जिनपद चरचों भावसों,जासों जन्म जरा जर जाय हो॥ . प्राणी मुनिसुव्रत जिन पूजिये। ॐ ह्रीं शनि अरिष्टनिवारक श्री मुनिसुव्रत जिन पंचकल्याणक प्राप्ताय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.032861
Book TitleNavgrah Arishta Nivarak Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalmukund Digambardas Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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