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________________ 26 ] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान जयमाला मन वच तन ध्यावो, पाप नसावो, सब सुख पावो, अघ हरणं। ग्रह दूषण जाई, हर्ष बढ़ाई, पुष्पदन्त जिनवर चरणं // पद्धड़ी छन्द जय पुष्पदन्त, जिनराज देव, सुर असुर सकल मिल करहि सेव। जय फाल्गुन सुदि नौमी बखान, सुरपति सुर गर्भकल्याण ठान॥ जय मार्गशीर्ष शशि उदय पक्ष, नौमी तिथि जगमें भये प्रत्यक्ष। जय जन्म-महोत्सव इन्द्र आय, सुर गति ले इन्द्र न्हवन कराय॥ जय वज्रवृषभ नाराच देह दश शत वसु लक्षण सुनहि गेह। जय राजनीति कर राज कीन, मगसिरसित पड़वा तप सु लीन॥ जय कार्तक सुदी दुतिया महान, लहि केवलज्ञान उद्योत भान॥ जय भव्य जीव उपदेश देय, जग जलदि उबारन सुजस लेय। जय भादों सुदी आठे प्रसिद्ध, इन शेष कर्म प्रभु भये सिद्ध॥ जय जय जगदीश्वर भये देव, भृगु तजहिं दोपहर करत सेव। जय मनवांछित तुम करत ईश, मन शुद्ध जलधि तुम नमत शीश ॐ ह्रीं शुक्र अरिष्टनिवारक श्री पुष्पदन्त जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। सब गुण अधिकारी, दूषण हारी, मारी रोगादिक हरनं। भृगु सुत दुख जाई, पाप मिटाई, पुष्पदन्त पूजत चरणं॥ इति आशीर्वादः /
SR No.032861
Book TitleNavgrah Arishta Nivarak Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalmukund Digambardas Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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