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________________ 90 क्षयोपशम भाव चर्चा द्रव्यादि-निमित्त के वश कर्मों के फल का प्राप्त होना, उदय है। तथा जिसके होने में द्रव्य का स्वरूप-लाभ मात्र कारण है, वह परिणाम है। जिस भाव का प्रयोजन अर्थात् कारण उपशम है, वह औपशमिक भाव है। इसी प्रकार जिस भाव का प्रयोजन क्षय है, वह क्षायिक भाव है। जिस भाव का प्रयोजन क्षयोपशम है, वह क्षायोपशमिकभाव है। जिस भाव का प्रयोजन उदय है, वह औदयिक भाव है। जिस भाव का प्रयोजन परिणाम है, वह पारिणामिक भाव है। इस प्रकार सभी की व्युत्पत्ति होती है। ये पाँचों भाव जीव के असाधारण भाव हैं; इसलिए ये जीव के स्वतत्त्व कहलाते हैं। विशेष रूप से क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद तत्त्वार्थसूत्र के दूसरे अधिकार में कहा है - 'ज्ञानाऽज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुस्त्रि-त्रि-पञ्चभेदाः सम्यक्त्व-चारित्रसंयमासंयमाश्च।' (तत्त्वार्थसूत्र, 2/5) अर्थात् चार सम्यग्ज्ञान, तीन अज्ञान (मिथ्याज्ञान), तीन दर्शन, पाँच दानादि लब्धियाँ, सम्यक्त्व, चारित्र और संयमासंयम; ये अठारह प्रकार के क्षायोपशमिक भाव हैं। सर्वार्थसिद्धि टीका में क्षायोपशमिक भाव की परिभाषा इस प्रकार दी है सर्वघाति-स्पर्द्धकानामुदय-क्षयात्तेषामेव सदुपशमाद्देशघाति-स्पर्द्धकानामुदये क्षायोपशमिको भावो भवति। तत्र ज्ञानादीनां वृत्तिः स्वावरणान्तराय-क्षयोपशमाद् व्याख्यातव्या। सम्यक्त्वग्रहणेन वेदकसम्यक्त्वं गृह्यते। अनन्तानुबन्धीकषायचतुष्टयस्य मिथ्यात्व-सम्यग्मिथ्यात्वयोश्चोदयक्षयात्सदुपशमाच्च सम्यक्त्वस्य देशघातिस्पर्द्धकस्योदये तत्त्वार्थश्रद्धानं क्षायोपशमिकं सम्यक्त्वम्। अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानद्वादशकषायोदयक्षयात्सदुपशमाच्च संज्वलनकषायचतुष्टयान्यतमदेशघातिस्पर्द्धकोदये नोकषायनवकस्य यथासम्भवोदये च निवृत्तिपरिणाम आत्मनः क्षायोपशमिकं चारित्रम्।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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