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________________ तृतीय चर्चा सम्यक्क्षायोपशमिकभाव चर्चा मंगलाचरण अरिहंतभासियत्थं, गणहरदेवेहिं गंथियं सम्मं / पणमामि भत्तिजुत्तो, सुदणाणं महोवयं सिरसा / / अर्थात् अरहन्त भगवान द्वारा कहा गया और गणधरदेव द्वारा भले प्रकार से Dथा गया जो जिनागम है, वही सूत्र है - ऐसे सूत्रों के आधार पर श्रमणजन, परमार्थ को साधते हैं। ___अब, यहाँ आगम के आलोक में क्षायोपशमभाव की व्याख्या की जाती है / क्या है क्षायोपशमिक भाव? जिनागम में जीवों के असाधारण पाँच भाव कहे हैं - 'औपशमिक-क्षायिकौ भावौ मिश्रश्श जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च / ' (तत्त्वार्थसूत्र, 2/1) अर्थात् औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदयिक और पारिणामिक - ये पाँच भाव जीव के स्वतत्त्व हैं। ___ इस सूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में इन पाँच भावों की व्याख्या करते हुए लिखा है - जैसे, कतकादि द्रव्य (फिटकरी) के सम्बन्ध से जल में कीचड़ का उपशम हो जाता है, उसी प्रकार आत्मा में कर्म की निजशक्ति का कारणवश प्रगट न होना, उपशम है। जैसे, उसी जल को दूसरे साफ बर्तन में बदल देने पर कीचड़ का अत्यन्त अभाव हो जाता है, वैसे ही कर्मों का आत्मा से सर्वथा दूर हो जाना, क्षय है। जैसे, उसी जल में कतकादि द्रव्य के सम्बन्ध से कुछ कीचड़ का अभाव हो जाता है और कुछ बना रहता है, उसी प्रकार उभयरूप भाव, मिश्र है।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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