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________________ 78 क्षयोपशम भाव चर्चा है, उसप्रकार संयम जीव का लक्षण नहीं है। समीक्षा - उक्त कथन का तात्पर्य यह है कि - चारित्र तो जीव का स्वभाव है, पर संयम नहीं। संयम तो हिंसादि सावध योग के त्याग का नाम है। जो त्रसादि की हिंसा से निवृत्त होने से एकदेश हो तो अणुव्रत और सर्वसावध योग से सर्वदेशनिवृत्ति हो तो महाव्रत रूप संयम होता है; जबकि चारित्र नाम वीतरागता का है, जो महाव्रत रूप संयम के पालनेरूप निमित्त (उचित बहिरंग-साधन की सन्निधि) की अनुकूलता में स्वभाव के आश्रय से व्यक्त होता है और सादि-अनन्तकाल तक वर्तता रहता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो संयम तो अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति रूप होता है और चारित्र, शुभ व अशुभ दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों से निवृत्ति रूप तथा शुद्धात्मा में प्रवृत्ति रूप शुद्धपरिणति रूप (स्वरूपाचरण रूप, सकल कषायरहित एक वीतरागभावरूप) होता है। इसीलिए तत्त्वार्थसूत्र के सातवें अध्याय में अणुव्रतों-महाव्रतों को भी आस्रवपदार्थ का निरूपण करते हुए शुभआस्रवरूप कहा है। आस्रव, बन्ध का साधक तथा चारित्र, मोक्ष का साधक अर्थात् संवर-निर्जरा रूप होता है। इस सम्बन्ध में और भी आगम प्रमाण उपलब्ध हैं, देखिए - (10) राजवार्तिक - अध्याय 9 सूत्र 18 पृष्ठ 617 स्यादेतत् दशविधो ...... साक्षात्कारणमिति ज्ञापनाय। प्रश्न - दश प्रकार का धर्म कहा गया है, तहाँ संयम नाम के धर्म में चारित्र का अन्तर्भाव प्राप्त होता है? उत्तर - नहीं, क्योंकि सकल कर्मों के क्षय का कारण होने से चारित्र, मोक्ष का साक्षात् कारण है; इसलिए ‘स गुप्ति-समिति-धर्मानुप्रेक्षा-परिषहजय-चारित्रैः, एवं सामायिक छेदोपस्थापना-परिहारविशुद्धि-सूक्ष्मसाम्पराय-यथाख्यातमिति चारित्रम्।' (- राजवार्तिक, अ. 9, सूत्र 2 एवं 6, पृ. 596) इस सूत्र में चारित्र का अन्त में ग्रहण किया गया है। प्रश्न - तब फिर संयम क्या है? उत्तर - समितियों में प्रवर्तमान जीव के प्राणि-वध व इन्द्रिय-विषयों का परिहार, संयम कहलाता है।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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