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________________ द्वितीय चर्चा : क्षायोपशमिक भाव : आगम-प्रमाण 77 प्रत्याख्यानावरणीय कषाय के उदय से संयमासंयमरूप अप्रत्याख्यान चारित्र उत्पन्न होता है। प्रश्न - संयमासंयमरूप देशचारित्र के आधार से सम्बन्ध रखने वाले कितने सम्यग्दर्शन होते हैं? उत्तर - क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक - इन तीनों में से कोई एक सम्यग्दर्शन विकल्प से होता है; क्योंकि उनमें से किसी एक के बिना अप्रत्याख्यान चारित्र का प्रादुर्भाव ही नहीं हो सकता। शंका - सम्यग्दर्शन के बिना भी देशसंयमी देखने में आते हैं? उत्तर - नहीं, क्योंकि जो जीव, मोक्ष की आकांक्षा से रहित हैं और जिनकी विषय-पिपासा दूर नहीं हुई, उनके अप्रत्याख्यान संयम की उत्पत्ति हो नहीं सकती है। (8) धवला, पु. 1 (130/380) मिथ्यादृष्टयोऽपि केचित्संयता ...... शेषपापक्रियत्वात्। प्रश्न - कितने ही मिथ्यादृष्टि जीव संयत देखे जाते हैं? समाधान - नहीं, क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना संयम की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। प्रश्न - सिद्ध जीवों के कौनसा संयम होता है? समाधान - एक भी संयम नहीं होता, उनके बुद्धिपूर्वक निवृत्ति का अभाव होने से वे संयत नहीं हैं, इसलिए वे संयतासंयत भी नहीं हैं और असंयत भी नहीं हैं, क्योंकि उनके सम्पूर्ण पाप क्रियाएँ नष्ट हो चुकी हैं। (9) धवला, पु. 7 (56/96) संजमो णाम जीव-सहाओ ...लक्खणत्ताभावादो। प्रश्न - संयम तो जीव का स्वभाव ही है, इसलिए वह अन्य के द्वारा अर्थात् कर्मों के द्वारा नष्ट नहीं किया जा सकता, क्योंकि उसका विनाश होने पर जीवद्रव्य के भी विनाश का प्रसंग आता है? उत्तर - नहीं आयेगा, क्योंकि जिसप्रकार उपयोग जीव का लक्षण माना गया
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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