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________________ क्षयोपशम भाव चर्चा इस विषय में दिग्भ्रमित होने का वास्तविक एक कारण यह भी है कि चारित्र और संयम को हमने सर्वथा एकार्थवाची मान लिया है, जिससे इस विषय की गुत्थी नहीं सुलझ रही है; हम यह सर्वथा कह नहीं सकते हैं कि जहाँ-जहाँ चारित्र है, वहाँ-वहाँ संयम है और जहाँ-जहाँ संयम नहीं है, वहाँ-वहाँ चारित्र भी नहीं है। ____15-17. चतुर्थ गुणस्थान और ऊपर के गुणस्थानों के क्षायिक-सम्यक्त्व को भी सम्यक्त्व के दश भेदों के माध्यम से समझा जा सकता है। मूलतः सम्यक्त्व के तीनों भेद, श्रद्धा गुण से सम्बन्ध रखते हैं, लेकिन उनमें अन्य गुणों का उपचार किया जाएगा तो सम्यक्त्व के दश भेद तो क्या, उसके अनेक भेद सम्भव हैं। दश भेद तो उदाहरणस्वरूप हैं; उसी प्रकार विशुद्धि के निमित्त से होनेवाले लब्धिस्थानों में अन्तर होना भी स्वाभाविक है। दूसरी बात यह है कि आत्मा, द्रव्यद्रष्टि से एक अभेद वस्तु है, उसे गुणभेद से देखना, व्यवहार है; अभेदद्रष्टि से जब तक आत्मा सिद्धसमान पूर्ण शुद्ध नहीं हो जाता, तब तक अनेक द्रष्टियों से उसमें भेद बनेंगे ही, उसे कैसे रोका जा सकता है? 18. क्षायिक-सम्यक्त्व और निश्चय-सम्यक्त्व को एकार्थवाची नहीं माना जा सकता, क्योंकि क्षायिक सम्यक्त्व में दर्शन-मोह के क्षय की अपेक्षा होती है, जबकि जो निश्चयनय से सम्यक्त्व का स्वरूप समझा जाता है, उसे निश्चयसम्यक्त्व कहते हैं। समयसार की 13वीं गाथा में भूतार्थ से जाने हुए नौ तत्त्वों को सम्यक्त्व अर्थात् निश्चय-सम्यक्त्व कहा है। भूतार्थ से नौ तत्त्वों को जानना अर्थात् अपने एकत्व-विभक्त-स्वरूप निज शुद्धात्मा का श्रद्धान करना ही निश्चय-सम्यक्त्व है। दूसरी बात यह है कि जिस प्रकार क्षायिक -सम्यक्त्व में निश्चय-व्यवहार दोनों विवक्षाएँ घटित हो जाती हैं, उसी प्रकार क्षयोपशम-सम्यक्त्व और उपशमसम्यक्त्व में भी निश्चय-व्यवहार दोनों विवक्षाएँ घटित हो जाती हैं। इस प्रकार तीनों सम्यक्त्वों में निश्चय-व्यवहार दोनों विवक्षाएँ घटित हो जाती हैं। अतः निश्चय-सम्यक्त्व की स्थिति, तीनों प्रकार के सम्यक्त्वों में घटित हो जाती है अर्थात् जब तीनों प्रकार के सम्यक्त्वों में उपयोग स्वभाव-सन्मुख होता है, उस समय वह निश्चय-सम्यक्त्व ही कहलाता है।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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