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________________ प्रस्तावना : क्षयोपशम भाव के सम्बन्ध में निष्कर्ष निमित्तभूत: पर-जीव-घातो व्यवहार-हिंसेति द्विधा हिंसा ज्ञातव्या, किन्तु विशेष: - बहिरंग-हिंसा भवतु वा मा भवतु, स्वस्थ-भावनारूप-निश्चय-प्राणघाते सति निश्चय-हिंसा नियमेन भवतीति; ततः कारणात्सैव मुख्येति। अर्थात् यहाँ यह भाव है कि अपने आत्मस्वभाव की भावनारूप निश्चयप्राण का विनाश करनेवाली रागादि-परिणति निश्चय-हिंसा कही जाती है। रागादि उत्पन्न होते समय बाहरी निमित्तरूप जो परजीव का घात है, सो व्यवहार- हिंसा है - ऐसे दो प्रकार की हिंसा जाननी चाहिए, किन्तु विशेष यह है कि बाहरी हिंसा हो या न हो, जब आत्म-स्वभाव की भावनारूप निश्चयप्राण का घात होगा, तब निश्चय-हिंसा नियम से होगी और उस कारण वही मुख्य है। (प्रवचनसार गाथा 217 की आचार्य जयसेनकृत तात्पर्यवृत्ति टीकाका हिन्दी अनुवाद) ...जो अशुद्धोपयोग के बिना नहीं होता - ऐसे अप्रयत आचार के द्वारा प्रसिद्ध (ज्ञात) होनेवाला अशुद्धोपयोग का सद्भाव हिंसक ही है, क्योंकि उससे छह काय के प्राणों के व्यपरोप के आश्रय से होनेवाले बन्ध की प्रसिद्धि है और जो अशुद्धोपयोग के बिना होता है - ऐसे प्रयत आचार से प्रसिद्ध (ज्ञात) होने वाला अशुद्धोपयोग का असद्भाव अहिंसक ही है, क्योंकि पर के आश्रय से होने वाले लेश मात्र भी बन्ध का अभाव होने से जल में झूलते हुए कमल की भाँति निर्लेपता की प्रसिद्धि है। (प्रवचनसार गाथा 218 की आचार्य अमृतचन्द्र कृत तत्त्वप्रदीपिका टीका का हिन्दी अनुवाद) शुद्धात्म-संवित्ति-लक्षण-शुद्धोपयोग-परिणत-पुरुषः .... अर्थात् जो साधु, शुद्धात्मा के अनुभवरूप शुद्धोपयोग में परिणमन कर रहा है, वह पृथ्वी आदि छह कायरूप जन्तुओं से भरे हुए इस लोक में विचरता हुआ भी, यद्यपि बाहर में उसके निमित्त से कुछ द्रव्य-हिंसा होती है तो भी उसके निश्चय-हिंसा नहीं है। (प्रवचनसार गाथा 218 की आचार्य जयसेनकृत तात्पर्यवृत्ति टीका) अशुद्धोपयोग के सद्भाव में होने वाले काय-चेष्टा पूर्वक परप्राणों के घात से तो बन्ध होता है, परन्तु अशुद्धोपयोग के असद्भाव में होने वाले काय-चेष्टा पूर्वक पर-प्राणों के घात से तो बन्ध नहीं होता।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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