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________________ 18 क्षयोपशम भाव चर्चा राग, शोभन उपराग, शुभोपराग या शुभोपयोग है। यहाँ क्षायोपशमिकभाव ही मुख्यता से इसलिए कहा कि शेष सम्यक्त्वी (उपशम व क्षायिक) तो क्षायोपशमिक जीवस्थान, अल्प-बहुत्व 15-17, सर्वार्थसिद्धि 211, धवल 3/68 आदि) इसी प्रकार चारित्रमोह में भी क्षायोपशमिक भाव वाले यानि क्षायोपशमिकचारित्र वाले ही पाँचवें व छठे गुणस्थान में होते हैं, अन्य चारित्रवाले नहीं (देखो, धवल 5 भावानुगम में संयतासंयत व संयत के भाव) ऐसी विशिष्ट-क्षयोपशमदशा में वर्तनेवाले दर्शन-चारित्र-मोहनीय (यथायोग्य) रूप कर्म के अनुसार परिणति में लगा होने से वहाँ की भूमिका का वह राग भी शोभन है अर्थात् शुभ है। वैसा होने से वहाँ होनेवाला पंचपरमेष्ठी की श्रद्धा तथा जीवदयाभाव शुभोपयोग है। ___ गाथा 159 में जो शुभ-अशुभ को मन्द व तीव्र उदयदशा में रहनेवाला कहा है, वह मात्र उस-उस स्वकीय भूमिका के राग अंश, कषाय अंशरूप शुभाशुभ की अपेक्षा कहा है। मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी के गये बिना कैसा मन्द उदय? इन दोनों से संजात विपरीताभिनिवेश विषय-भोगाकांक्षा परिणाम तथा प्रतिशोधभाव चले जाने पर ही परमार्थतः ‘मन्द उदय' है। (ख) 1. रत्नत्रय, आर्जवधर्म, दया धर्म.....मय भाव शुभभाव है। (-रयणसार 64-65 दवत्थकाया....) 2. शुभोपयोगलक्षणं सरागचारित्राभिधानं भवति / अर्थात् अपहृत संयम नामक शुभोपयोग लक्षणवाले सरागचारित्र नामवाला होता है। (द्रव्यसंग्रह, टीका 45) 3. 'शुभः धर्म्यम्' धर्म्य-ध्यान शुभभाव है। (मात्र मन्द-कषाय भाव नहीं।) (भावपाहुड़, मूल 76) 4. एकदेश-परित्यागः ....... शुभोपयोगः इति एकार्थः। सर्व-परित्यागः ......शुद्धोपयोगः इति एकार्थः। अर्थात् एकदेश-त्याग और शुभोपयोग, ये एकार्थवाचक हैं तथा सर्व-परित्याग तथा शुद्धोपयोग एकार्थवाचक शब्द हैं। (प्रवचनसार, ता.वृ. 230)
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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