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________________ 133 षष्ठम चर्चा : प्रवचनसार में शुभ-अशुभ-शुद्धोपयोग अब इस उपयोग के शुद्ध और अशुद्ध - ऐसे दो भेद किये हैं; उसमें शुद्धउपयोग, निरूपराग (निर्विकार) है और अशुद्ध-उपयोग सोपराग (सविकार) है और अशुद्ध-उपयोग, शुभ और अशुभ - ऐसे दो प्रकार का है; क्योंकि उपराग विशुद्धिरूप और संक्लेशरूप - ऐसा दो प्रकार का है। (अर्थात् उपराग = विकार, वह मन्दकषायरूप और तीव्रकषायरूप - ऐसा दो प्रकार का है। (तत्त्वप्रदीपिका) प्रवचनसार, गाथा 156 जीव को परद्रव्य के संयोग का कारण अशुद्ध उपयोग है और वह विशुद्धि तथा संक्लेशरूप उपराग के कारण शुभ और अशुभ रूप से द्विविधता को प्राप्त होता हुआ, पुण्य और पापरूप से द्विविधता को प्राप्त होता है - ऐसा वह परद्रव्य के संयोग के कारणरूप से काम करता है, किन्तु जब दोनों प्रकार के अशुद्धोपयोग का अभाव किया जाता है, तब वास्तव में उपयोग शुद्ध ही रहता है और वह तो परद्रव्य के संयोग का अकारण ही है। (तत्त्वप्रदीपिका) प्रवचनसार, गाथा 157 'विशिष्ट क्षयोपशम' दशा में रहनेवाले दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय रूप पुद्गलों के अनुसार परिणति में लगा होने से शुभ-उपराग का ग्रहण किया होने से जो (उपयोग) परम भट्टारक महादेवाधिदेव, परमेश्वर - ऐसे अरहन्त, सिद्ध और साधु की श्रद्धा करने में प्रवृत्त है, वह शुभोपयोग है। (तत्त्वप्रदीपिका) समीक्षा - 1. यहाँ 'विशिष्ट क्षयोपशमदशा' शब्द का प्रयोग (सरागसम्यक्त्व एवं सराग-चारित्र) के अर्थ में प्रयुक्त हुआ समझना चाहिए, जो कि गाथा 159 की टीका से जाना जा सकता है। 2. समयसार गाथा 74 तथा प्रवचनसार गाथा 255 की तात्पर्यवृत्ति टीका में कथित 'अज्ञानी मिथ्यादृष्टि के शुभभाव को उपचार से ही शुभोपयोग कहा है, क्योंकि स्वात्मानुभूति रूप निश्चय सम्यग्दर्शन के बिना (निर्विकल्प आत्मानुभूति रूप शुद्धोपयोग की प्राप्ति बिना) उसका वह शुभभाव, निज-ध्रुव-चिदानन्दात्मा को छोड़कर, भोगाकांक्षा निदानरूप होने से परम्परया भी निर्वाण का कारण नहीं होता, क्योंकि उसके संवर-निर्जरातत्त्व प्रगट नहीं है।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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