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________________ 114 क्षयोपशम भाव चर्चा से, पहले से तीसरे तक अशुभोपयोग, चौथे से छठवें तक शुभोपयोग तथा सातवें से बारहवें तक शुद्धोपयोग कहा है, परन्तु यह कथन मुख्यता/बहुलता की दृष्टि से कथंचित् ही है, सर्वथा नहीं। वह इस प्रकार है - ___पहले गुणस्थानवी जीव भी शुक्ललेश्या में मरण कर, नवमें गैवेयक तक तथा दूसरे गुणस्थानवाले देवों में उत्पन्न होते हैं। देवायु का बन्ध, शुभभावों से होता है; अतः यहाँ अशुभोपयोग के साथ शुभभाव भी स्वतःसिद्ध है। ___चतुर्थ गुणस्थान में सम्यग्दर्शन-ज्ञान सहित सम्यक्त्वाचरण-चारित्र तथा पाँचवें छठवें गुणस्थान में पूर्वोक्त सहित क्रमशः देशचारित्र, सकलचारित्र रूप रत्नत्रय या संवर-निर्जरातत्त्व विद्यमान हैं; अतः शुभोपयोग के साथ शुद्धोपयोग तथा शुद्धपरिणति सहज-सिद्ध है। इसी प्रकार चतुर्थ-पंचम गुणस्थानवर्ती श्रावक के अविरति, देशविरति, प्रमाद, कषाय, योग से होनेवाला अशुभ-आस्रवभाव तथा आर्तध्यानरौद्रध्यान भी पाया जाता है; इस प्रकार यहाँ अशुभोपयोग भी सिद्ध है। सातवें से दसवें गुणस्थान तक भी अव्यक्त विद्यमान भय आदि संज्ञाएँ तथा संज्वलन-कषाय आदि से होनेवाले बन्ध से अशुद्धता भी आगम-सिद्ध है। इस प्रकार पहले से तीसरे गुणस्थान तक बहुलतया अशुभोपयोग और गौणतया शुभभाव है। चौथे से छठवें गुणस्थान में शुभोपयोग की अधिकता है, अशुभोपयोग और शुद्धोपयोग, अपेक्षाकृत कम एवं यथायोग्य तथा शुद्धपरिणति सदाकाल विद्यमान है। आगे सातवें से दसवें गुणस्थान तक शुद्धोपयोग तथा आगम -सिद्ध (अव्यक्त कषायरूप) अशुद्धता विद्यमान है। शेष गुणस्थान, शुद्धोपयोग और उसके फलरूप ही हैं, वहाँ शुभभाव रंच मात्र भी नहीं है। इस सम्बन्ध में मोक्षमार्ग प्रकाशक के आठवें अधिकार में सुन्दर विश्लेषण किया गया है, उसके अनुसार कुछ लिखते हैं - उक्त सर्व कथन केवली-श्रुतकेवली कथित सम्यग्ज्ञान के एक अवयवरूप करणानुयोग का है; जिसमें जीव-कर्मादिक का, त्रिलोकादि का तथा मोक्षमार्ग के अवयव सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रादि का निरूपण होता है, जिसमें कर्म-प्रकृतियों के उदय-उपशमादि की अपेक्षा सूक्ष्मता सहित निमित्त-नैमित्तिक भावों को याथातथ्य रूप में दर्शाते हुए वर्णन किया जाता है; लेकिन इसमें छद्मस्थों की प्रवृत्ति के अनुसार
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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