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________________ तृतीय चर्चा : सम्यक् क्षायोपशमिक भाव चर्चा सो एक भाव से तो दो कार्य बनते हैं, परन्तु एक प्रशस्त राग ही से पुण्यास्रव भी मानना और संवर-निर्जरा भी मानना, सो भ्रम है। ___मिश्रभाव में भी यह सरागता है, यह वीतरागता है- ऐसी पहिचान, सम्यग्दृष्टि के ही होती है, इसलिए अवशेष सरागता को हेयरूप श्रद्धा करता है, मिथ्यादृष्टि के ऐसी पहिचान नहीं है, इसलिए सरागभाव में संवर के भ्रम से प्रशस्त रागरूप कार्यों को उपादेयरूप श्रद्धा करता है। तथा सिद्धान्त में गुप्ति, समिति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परीषहजय, चारित्र; इनके द्वारा संवर होता है - ऐसा कहा है। (स गुप्ति-समिति-धर्माऽनुप्रेक्षा-परिषहजयचारित्रैः - तत्त्वार्थसूत्र, 9/2) सो इनकी भी यथार्थ श्रद्धा नहीं करता।" __इसी तथाकथित व्यवहाराभासी संयमी जीव की चारित्र (धर्म) के बारे में कैसी अभिप्राय की भूल पड़ी रहती है? इससम्बन्धमें भी उन्हीं सातिशय प्रज्ञा के धनी आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्गप्रकाशक में पृष्ठ 229-230 पर निम्न प्रकार खुलासा किया है - ___"चारित्र - हिंसादि सावद्य-योग के त्याग को चारित्र मानता है, वहाँ महाव्रतादि रूप शुभयोग को उपादेयपने से ग्राह्य मानता है; परन्तु तत्त्वार्थसूत्र में आस्रवपदार्थ का निरूपण करते हुए महाव्रत-अणुव्रत को भी आस्रवरूप कहा है। वे उपादेय कैसे हों? तथा आस्रव तोबन्ध का साधक है और चारित्र, मोक्ष का साधक है, इसलिए महाव्रतादिरूप आस्रवभावों को चारित्रपना सम्भव नहीं होता; सकलकषाय रहित जो उदासीनभाव, उसी का नाम चारित्र है। जो चारित्रमोह के देशघाति-स्पर्द्धकों के उदय से महामन्द प्रशस्तराग होता है, वह चारित्र का मल है (विकार है), उसे छूटता न जानकर उसका त्याग नहीं करते, सावद्ययोग का ही त्याग करते हैं; परन्तु जैसे कोई पुरुष, कन्द-मूलादि बहुत दोष वाली हरित-काय का तो त्याग करता है और कितनी ही हरित-काय का भक्षण करता है, परन्तु उसे धर्म नहीं मानता। उसी प्रकार मुनि, हिंसादि तीव्रकषायरूप भावों का त्याग करते हैं और कितने ही मन्दकषायरूप महाव्रतादि का पालन करते हैं, परन्तु उसे मोक्षमार्ग नहीं मानते। प्रश्न - यदि ऐसा है तो चारित्र के 13 भेदों में महाव्रतादि कैसे कहे हैं?
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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