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________________ संकेत-पाक्रोडो देवदत्तः सर्वाह्नमाक्रीडते, पठनं त्विच्छत्येव न / देवदत आक्रीडी (अस्ति ) ऐसा कहें तो देवदत्त उद्देश्य होता है और आक्रीडी विधेय / विशेषण-विशेष्य की तरह उद्देश्य-विधेय की भी समानाधिकरणता होती है,पर उद्देश्य और विधेय में कहीं-कहीं लिङ्ग व वचन का भेद होता है। सर्वाल के स्थान में सर्वाह नहीं कह सकते। सर्वाल पु. है। यहाँ द्वितोया विभक्ति में प्रयोग है / यहाँ 'पाकोडते' में आत्मनेपद पर ध्यान देना चाहिये / ४-देवदत्ता चतुर्दशवर्षा कन्यका / यहाँ चतुर्दशवार्षिकीकहना ठीक न होगा। ५-चतुर्दशवार्षिकीयं पाठशाला / चतुर्दश वर्षाणि भूता= चतुर्दशवाषिकी / यहाँ चतुर्दशवर्षा कहना अशुद्ध होगा। ६-असौ सुकुमारी वल्लो वातेरितनवपल्लवाङ्गुलिभिर्नस्त्वरयतीव / यहाँ 'अदम' का प्रयोग व्यवहार के अनुकूल है, तद् का नहीं। सुकुमार का स्त्रीलिंग रूप 'सुकुमारी' है, 'सुकुमारा' नहीं +18-अयं लोहितक: कोपेन, एनं परिहर / यहाँ 'लोहित' से स्वार्थ में 'कन्' हना है वर्ण की अनित्यता द्योत्य होने पर 'वर्णे चानित्ये'(५।४।३१) / 'एनम्' के स्थान में इमम् नहीं कह सकते अन्वादेश होने से / दुःखिते अस्याक्षिणो, तस्मादयं दीपशिखामग्रतो न सहते / १०-संरूढास्तस्य नयनवणाः (संख्ढानि तस्य नयनत्रणानि)। 'वरण' पुल्लिग और नपुसकलिङ्ग है, पर 'नाडीव्रण' केवल पुल्लिङ्ग है। १२-पत्नी नाम गृहपत्नी (गृहपतिः),एतत्तन्त्रं हि गृहतन्त्रम् / 'प्रबन्ध' शब्द का जो हिन्दी में अर्थ है वह संस्कृत में नहों। संस्कृत में इसके अर्थ को 'संविधा' 'संविधान' शब्दों से कहा जाता है। तन्त्र धन्धे को कहते हैं और अधीन को भी। १८-कष्ट व्याकरण, कष्टतराणि सामानि / कष्टा मीमांसा, कष्टतर आम्नायः / संस्कृत में इस अर्थ में कठिन शब्द का प्रयोग नहीं होना / 'कठिन' ठोस को कहते हैं / और क्रूर को भी। अभ्यास-५ १-ऋषि और मुनि सबकी पूजा के योग्य हैं, क्योंकि वे 'पापरूपी दलदल में फंसे हुए लोगों का उद्धार करते हैं / २-राम और सीता प्राणियों यदि चेतन पदार्थ अभिधेय हो तो 'तमधीष्टो भतो भूतो भावी' इस अर्थ में आया हया तद्धित प्रत्यय लुप्त हो जाता है / 'चित्तवति नित्यम्' (5 / 189) -यह नियम वर्षान्त द्विगु समास (द्विवर्ष,पञ्चवर्ष,विशतिवर्ष,प्रशीतिवर्ष,इत्यादि) में लगता है। ___+कुमार शब्द से वयसि प्रथम' इस सूत्रसे ङोप प्रत्यय होता है / सुकुमार शब्द से भी इसी सूत्र से ङीप होगा,क्योंकि स्त्रीप्रत्यय अधिकार में तदन्तविधि होती है और सुकुमार में कुमार शब्द उपसर्जन नहीं, सुकुमार प्रादितत्पुरुष है / अतः 'अनुपसर्जनात्' यह निषेध यहाँ लाग नहीं / सुकुमार का कोमल' अर्थ उपचार से है / 1-1 पापपङ्कनिमग्नानुद्ध रन्ति /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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