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________________ अभ्यास-४ (विशेषण-विशेष्य की समानाधिकरणता) . १-देवदत्त खिलाड़ी है, सारा दिन खेलता रहता है, पढ़ने का तो नाम नहीं लेता / २-विष्णुमित्र का पढ़ने में नियम नहीं', यह रसिक अवश्य है / 3-* जो भी उत्पन्न हुआ है वह विनाशशील है, यह नियम है / ४-देवदत्ता चौदह वर्ष की लड़की है, इस छोटी अवस्था में इसने बहुत कुछ पढ़ लिया है। ५—यह स्कूल चौदह वर्ष का पुराना है / इस लम्बे समय में इस ने विशेष उन्नति नहीं की। ६-वह सामने कोमल बेल वायु से हिलाई हई नयी कोंपल-रूपी उंगलियों से हमें अपनी ओर बुला रही है / ७-यह छिछले जल वाला तालाब है, गरमी की ऋतु में यह सूख जाता है / ८-यह पुराना मकान गिरने को है', नगर रक्षिणी सभा को चाहिये कि इसे गिरा दे। 8वह क्रोध से लाल पीला हो रहा है, इससे परे रहो / १०-इसकी आँखे भाई हुई हैं, अतः इसे दीये की ज्योति बुरी लगती है / ११–उसकी आँखों के घाव अच्छे हो गये हैं, बेचारे ने बहुत कष्ट उठाया। १२-निश्चय ही पत्नी घर की स्वामिनी है, घर का प्रबन्ध इसी के अधीन है / १३-विद्वान् परस्पर डाह किया करते हैं / यह शोच्य है, क्योंकि इसमें हेतु नहीं दीखता / १४-मिथ्या गवित अयोग्य अध्यापक अमित हानि करता है। 15-* घमंड में आये हुए कार्य और अकार्य को न जानते हुए, कुमार्ग का आश्रय किए हुए गुरु को भो दण्ड देना उचित है / १६-ॐरजस्वला कन्या पापिन (पापा) होती है, अपढ़ राजा पापी (पापः) होता है, हिंसक शिकारियों का कुल पापी (पापम्)होता है और ब्राह्मण सेवक भी पापी (पापः) होता है। 17-* थोड़े समय में सोखी हुई (शीघ्रा कला) मनुष्यों के बुढ़ापे का कारण बनती है, जल्दी से जो मृत्यु हो जाय (शीघ्रो मृत्युः) वह ऐसे दुस्तर है जैसे बरसात में पहाड़ी नदी का तेज बहाव (शीघ्र स्रोतः)। १८-व्याकरण कठिन है, साममन्त्र इससे अधिक कठिन हैं / मीमांसा कठिन है, वेद इससे अधिक कठिन है। 1-1 अनियमः पाठे ( विष्णमित्रः ) / पाठेऽनित्यः ( अनियतः ) / 2-2 एतावता दीर्घरण कालन / 3-3 गाव / 4 पुराण, जीर्ण-वि० / 5-5 पतनोन्मुखम् / 6-6 बुधाः समत्सराः, मत्सरिणो विद्वांसः /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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