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________________ माचक्राम / इतः सप्ताहद्वयं पूर्वं धारासारैरवर्षद् देवः / ' अथवा-'इतः षड्भ्यो मासेभ्यः पूर्वं बलवद् भूरकम्पत / इतो वर्षसहस्रात् पूर्व महमूदो भरतभुवमाचक्राम / इतः सप्ताहद्वयात् पूर्वं धारासारैरवर्षद् देवः / ' यहाँ पहले प्रकार के भाषान्तरों में'षण्मासान् पूर्व, वर्षसहस्र पूर्व' और सप्ताहद्वयं पूर्वम्, बिना सोचे समझे रखे गये हैं। ये सर्वथा अनन्वित हैं। यहाँ वह समय जो घटना के होने के बाद व्यतीत हो चुका है, उसे सूचित करने के लिये द्वितीया अथवा प्रथमा का प्रयोग कैसे किया जा सकता है / हम यहाँ पर द्वितीया का तभी प्रयोग कर सकते हैं जब यहाँ अत्यन्त संयोग हो / यदि कम्प, आक्रमण, और वर्षण क्रियाओं से क्रम छः मास, हजारवर्ष, तथा दो सप्ताह पूर्णरूप से व्याप्त हुए हों। अर्थात् यदि क्रिया दिये हुए समय तक होती रही हो / प्रथमा का तभी प्रयोग हो सकता हैं जब इससे समता रखती हुई क्रिया साथ में हो। तिवाच्य कर्ता तो यहां क्रम से भू, महमूद और देव हैं / वस्तुतः हम यहाँ न तो द्वितीया का प्रयोग कर सकते हैं, और न प्रथमा का। दूसरे प्रकार के भाषान्तरों में 'इतः षडम्यो मासेभ्यः पूर्वम्' इत्यादि यद्यपि व्याकरण की दष्टि से ठीक हैं तो भी वाञ्छित अर्थ को सूचित नहीं करते। इनमें समय की विवक्षित एक अवधि की अपेक्षा दो अवधियाँ दी गई हैं, एक 'आज' दूसरी छः मास आदि, और उस काल का कोई परिच्छेद नहीं किया गया, जो व्यतीत हो चुका है / इन वाक्यों का सरल असन्दिग्व अर्थ तो यह है कि भूकम्प आदि घटना आज से पिछले छः मास आदि में नहीं हुई,पर उससे पहले कब हुई यह पता नहीं। निःसन्देह वक्ता का यह अभिप्राय नहीं। प्रतः ये दोनों प्रकार के प्रयोग दोषयुक्त होने के कारण त्याज्य हैं। उपर्युक्त दोनों प्रकार के दूषित वाक्यों के स्थान में शिष्टसम्मत प्रकार ये हैं--(१) अद्य षण्मासा बलवद्भुवः कम्पितायाः / अद्य वर्षसहस्र महमूदस्य भरतभुवमाक्रान्तवतः (अथवा "महमूदेन भरतभुव आक्रान्तायाः)। अद्य सप्ताहद्वयं धारासारैवृष्टस्य देवस्य / (२)-अद्य षष्ठे मासे बलवद्भरकम्पत / अद्य सहस्रतमे वर्षे महमूदो भरतभुवमाचक्राम / अद्य चतुर्दशे दिवसे धारासाररवर्षद् देवः / (3) इतः षट्सु मासेषु बलवद् भूरकम्पत / इतो वर्षसहस्र महमूदो भरतभुवमाचक्राम / इतः सप्ताहद्वये धारासारैरवर्षद् देवः॥ प्रथम प्रकार में दिये गये वाक्यों में षण्मासाः, वर्षसहस्रम् और सप्ताहद्वयम्-ये सब प्रतीत हुए काल की इयत्ता (मान) बतलाते हैं / ये 'प्रतीताः सन्ति' इत्यादि गम्यमान क्रियाओं के कर्ता होने से प्रथमान्त है / 'भुवः' इत्यादि में षष्ठी 'शैषिकी' है, और 'अद्य'
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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