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________________ ( 13 ) अपादान अर्थ में प्राण शब्द से पञ्चमी होनी चाहिए, पर मुच् का सकर्मक प्रयोग होने पर कर्म ( जो पदार्थ छोड़ा गया ) की भी आकांक्षा होती है और कर्ता (छोड़ने वाले ) की भी। “अपादानमुत्तराणि कारकाणि बाधन्ते" इस वचन के अनुसार प्राणों की अपादानता को बाधकर कर्मत्व की विवक्षा करने पर ( पुरुष में अर्थापन्न कर्तृत्व आ जाने पर ) अनुक्त कर्म में द्वितीया होती है और ‘स प्राणान् मुमोच' यह वाक्य बनता है। यदि वियोग में पुरुष को अवधिभूत मानें तो सकर्मक मुच् के प्रयोग में अपादानता को बाधकर पुरुष में उक्तरीति से कर्मता पा जायगी और प्राणों में कर्तृता। मुच् का अकर्मकतया* प्रयोग होने पर अथवा कर्म कर्त्ता के होने पर प्राण आदि की अपादानता बनी रहती है'यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ( गीता ) / मुच्यते सर्वपापेभ्यः ( पुराण ) / मुच्यते स्वयमेव मुक्तो भवति / कस्मात् ! अशुभात् / ' हो सकता है कि ये दोनों प्रकार के प्रयोग ( स प्राणान्मुमोच, तं प्राणा मुमुचुः ) पहले कभी अभिप्राय भेद से प्रयुक्त होते हों, और बाद में समानार्थक होकर निर्विशेष रूप से प्रयुक्त होने लगे हों। ___जो कुछ यहाँ मुच् के विषय में कहा गया है वह वि युज् ( सकर्मक ) के प्रयोग में अक्षरशः लागू है / 'न वियुङ्क्ते तं नियमेन मूढ़ता।' 'येन येन वियुज्यन्ते प्रजाः स्निग्धेन बन्धुना / ' यहाँ पुरुष (तद्) और प्रजा की अपादानता को बाधकर इनकी कर्मता स्वीकार की गई हैं / कर्तृत्व की आकांक्षा में 'मढता' और 'बन्धु' को वियोग क्रिया का कर्ता माना गया है। पर हा-त्यागना के कर्मकत-- प्रयोग में 'सार्थाद हीयते' इस वाक्य में 'सार्थ' की अपादानता अक्षत बनी रहती है। शुद्ध--कर्तृ प्रयोग में 'सार्थ' की कर्तृता होती ही है--सार्थ एतं जहाति / आजकल कई पण्डित निम्नस्थ वाक्यों का भाषान्तर भिन्न भिन्न प्रकार से करते हैं। जैसे--'छः महीने पूर्व एक भीषण भूकम्प प्राया', 'महमद ने भारत पर एक हजार वर्ष पूर्व आक्रमण किया', तथा-'पिछले पक्ष में मसलाधार वर्षा हुई। वे या तो उपर्युक्त वाक्यों का क्रमशः इस प्रकार भाषान्तर करते हैं'इतः षण्मासान् पूर्व बलवद् भूरकम्पत / इतो वर्षसहस्र पूर्व महमूदो भरतभुव * मुचोऽकर्मकस्य गुणो वा (7 / 4 / 57 ) मुच् की अकर्मकता में लिंग है।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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