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________________ ( 196 ) क्योंकि उस में उस किसान का 'विविध' कुटुम्बी जिमि धन हीना' का सत्यता सिद्ध करने वाला परिवार रहता था। अन्यथा उसको अवस्था किसी खंडहर से अधिक अच्छी न थी। चारों ओर की दीवारें बरसात के थपेड़े खाकर अत्याचार-पीडित किसानों की नाई-कहीं आधी कहीं सारी गिर गई थी, जिस के द्वारा कुत्ते बिल्ली ग्रादिक जीव जन्तु अपने पाखेट के अनुसन्धानार्थ निर्द्वन्द्व घर में आ जा सकते थे। मुख्य द्वार पर दो तीन अनगढ़ तख्ते अपनी टूटी टांगें अडाए हुए किवाड़ों का अभिनय कर रहे थे। भीतरी भाग में एक ओर एक फूस की छानी 3 थी और दूसरी ओर एक अधपटा बरोठा / प्रथम भाग टूटे फूट, अन्न हीन मृत्तिका-पात्रों से, जो आपस में टकरा कर बहुधा अचानक ही कराहने लग जाते थे, भरा हुआ था और दूसरा भाग टूटी खाटों और फटी हुई कथड़ियों का एक असाधारण संग्रहालय था, जिसमें दरिद्र-नारायण के प्रतिनिधि, इस आलीशान घर के निवासी अपने अवकाश की घड़ियां बिताया करते थे ! पशु धन का अभी तक यहां सर्वथा अभाव था। हां यदि कभी कहीं से कोई मरी टूटी बछिया इस 'बाम्हन' परिवार में आ जाती थी, तो उसे भी इसी दूसरे भाग में प्राश्रय मिलता था / संकेत-आज से ठीक पैंतीस वर्ष की बात है-इतः पूर्णेषु पञ्चविंशति वत्सरेष्विदं वृत्तं नाम / नव उन्नतिका".......'मास हुआ था-तदा मासो वाऽध्यर्धमासो वाऽभूत्सन्देशमुदात्तमाहरन्त्याः विश्याः शताब्द्याः स्वागतायाः / चारों ओर की दीवारें बरसात के ........."गिर गई थीं-प्रतिदिशं प्रावृषेण्यरासारराहतानि कुड्यानि निघृणमुपचरितानि कृषीवलकुलानीव क्वचिद्भ्रष्टानि क्वचिच्च भ्रष्टकानि / यहां 'प्रतिदिशम्' में 'अव्ययीभावे शरत्प्रभृतिभ्यः' इस सूत्र से टच समासान्त हुआ। 'भ्रष्टकानि' में 'अनत्यन्तगतो तात्' से कन् प्रत्यय हुआ। मुख्य द्वार पर....'अभिनय कर रहे थे....."मुखतोरणेऽतष्टप्रायाणि कथंचिद्विषक्तभग्नपादानि द्वित्राणि काष्ठकलकानि कपाटान्यनाटयन् / 1 'बहुप्रजो नितमाविर्शात दरिद्र' इति वचनमन्वर्थयन्नुवास / 2-2 भग्नावशेषान्न विशिष्यते स्म / 3-3 छादन, छदिस्-नमुं० / पाणिनीय लिङ्गानुशासन के अनुसार छदिस् स्त्रीलिङ्ग है। ४-प्रघण, प्रघाण, अलिन्द-पुं०।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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