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________________ ( 176 ) देवदत्त-कहते हैं कि संस्कृत की अपेक्षा फारसी में अधिकतर मिठास है। विष्णुदत्त-स्मरण रहे कि फारसी में संस्कृत की अपेक्षा प्राधी भी मिठास नहीं। देवदत्त-विशुद्ध तथा स्पष्ट रचना से तुम्हारा क्या अभिप्राय है ? विष्णुदत्त-संस्कृत के शब्द प्रायः व्युत्पन्न हैं-ये धातुज हैं / प्रायः संस्कृत 'की रचना ऐसी स्पष्ट होती है कि तुम स्फटिक में बिम्ब के समान इसमें भी मलांश को भलीभांति देख सकते हो। देवदत्त पर क्या आजकल संस्कृत पढ़ने की कोई आवश्यकता है ? विष्णुदत्त-वाह-वाह अनूठा प्रश्न किया ! क्या तुम यही सोचते हो कि इसकी अब कोई आवश्यकता नहीं ? देवदत्त-मेरा तो ऐसा ही विचार है / विष्णुदत्त-प्रिय मित्र, यह तुम्हारी भूल है। भारत के प्रतीत इतिहास के अध्ययन के लिए तथा इसकी संस्कृति व धर्म को जानने के लिए अन्य कोई भाषा उतनी सहायक नहीं जितनी कि संस्कृत / / ऐसा कौन होगा, जो ऋषि मुनियों की संगृहीत हुई ज्ञान-राशि से लाभ न उठाना चाहे। देवदत्त-तो क्या हम अनुवाद के द्वारा संस्कृत-साहित्य का सब परिचय प्राप्त नहीं कर सकते ? इतना अधिक समय तथा शक्ति को व्यर्थ क्यों खोया जाय? विष्णुदत्त-देव, क्या तुम यह मान सकते हो कि अनुवाद प्रमाण होते हैं ? क्या अनुवाद में मूल ग्रन्थों का असली सौन्दर्य तथा भाव आ सकते हैं ? देवदत्त-अनुवाद निश्चय से सहायक हैं, पर मैं यह नहीं कहता कि वे सदा ही प्रामाणिक होते हैं। विष्णुदत्त-मित्र, मैं तुमसे एक सीधा सा प्रश्न करता हूँ, क्या तुमने कभी अनुवाद में कविता का रसास्वादन किया है ? देवदत्त नहीं ! कदापि नहीं / विष्णुदत्त-तो देव, इसका यह अभिप्राय है कि मूल पुस्तक की सुंदरता तथा भाव अनुवाद के द्वारा प्रकट नहीं किये जा सकते ? देवदत्त-प्रिय मित्र, मैं यह मानता हूँ।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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