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________________ ( 8 ) जो), वासोदशा (वस्त्राञ्चल), प्रावि* (प्रसव वेदना), सक्तु, असु (प्राण), प्रजा, प्रकृति (मन्त्रिमण्डल या प्रजावर्ग), कश्मीर, तथा देशों के ऐसे नाम जो क्षत्रियों का निवास स्थान होने से बने हैं बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं / हिन्दी का 'तुम' एकवचन और बहुवचन दोनों वचनों का काम देता है। यदि विवक्षित वचन क्रिया से सूचित न हो, अथवा प्रकरण से वचन का निर्णय न हो सके तो छात्रों को अनुवाद करते समय एक वचन का ही प्रयोग करना चाहिए / एव 'यह तुम्हारा कर्तव्य है' इसका संस्कृत अनुवाद-'इदं ते कर्तव्यम्' होगा। इसी प्रकार-'अध्यापक ने कहा तुम्हें शोर नहीं करना चाहिये' इसकी संस्कृत'न त्वया शब्दः कार्य इति गुरुः स्माह' इस प्रकार होनी चाहिये। (एकवचनं त्वौत्सर्गिक बहुवचनं चार्थबहुत्वापेक्षम्)।। . कारक-संस्कृत में छः कारक हैं। संज्ञा शब्द और क्रियापद के नानासम्बन्धों को ही कारक कहते हैं / इस सम्बन्ध को सूचित करने के लिये छः विभक्तियां हैं / इन छ: विभक्तियों के अतिरिक्त एक और विभक्ति है जिसे षष्ठी कहते हैं / इससे प्रायः एक संज्ञा शब्द का दूसरे संज्ञा शब्द से सम्बन्ध सूचित किया जाता है / इन विभक्तियों से सदा कारकों का ही निर्देश नहीं होता, परन्तु ये विभक्तियां वाक्य में प्रति, सह, विना, अन्तरा, अन्तरेण, ऋते आदि निपातों के योग से भी 'नाम' से परे प्रयुक्त होती हैं / इनके अतिरिक्त ये विभक्तियां नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् आदि अव्ययों के योग से भी व्यवहृत होती हैं। ऐसी अवस्था में इन्हें 'उपपद विभक्तियाँ' कहते हैं / कारकों के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन करने का यह उचित स्थान नहीं / यहाँ हम संस्कृत वाग्व्यवहार की विशेषताओं का दिग्दर्शनमात्र ही कराते हुए हिन्दी वा संस्कृत भाषामों के प्रचलित व्यवहारों में भेद दर्शाना चाहते हैं / किसी कारक विशेष के समझने के लिये अथवा विभक्तियों के शुद्ध प्रयोग के लिए छात्रों को हिन्दी या दूसरी बोल-चाल की भाषाओं की वाक्य रचना की ज्ञापक है / यहाँ निरुक्तकार वेद में पाये 'पांसुरे' पद की व्याख्या करते हुए * इसमें 'ततोनन्तरमावीनां प्रादुर्भावः' यह चरक (शारीर० 8 / 36) का वचन प्रमाण है। + इसमें अमर का 'करम्भो दघिसक्तवः' यह क्चन प्रमाण है। तथा क्षीर का 'धानाचूर्ण सक्तकः स्युः' यह भी।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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