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________________ छात्रों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं / "दुहिता कृपणं परम्” (मनु० 4 / 185 // ) / यहाँ विशेष्य 'दुहिता' स्त्रीलिंग है और विशेषण 'कृपणं' नपुंसक है। 'अग्निः पवित्रं स मा पुनातु' (काशिका), 'आपः पवित्रं परमं पृथिव्याम्' (वाक्यपदीय में उद्धृत किसी शाखा का वचन)। यहाँ पवित्र भिन्न लिंग ही नहीं, भिन्म वचन भी है। 'प्राणापाणौ पवित्रे' (तै० सं० 3. 3. 4. 4) / प्रतिहारी (प्रतीहारी) स्त्री० शब्द द्वारपाल पुरुष के लिए भी प्रयुक्त होता है और स्त्री द्वारपालिका के लिए भी / द्वारि द्वाःस्थे प्रतीहारः प्रतीहार्यप्यनन्तरे' (अमर) / इस वचन पर टीकाकार महेश्वर का कथन है-अयं पुव्यक्तावपि स्त्रियाम् / इसी प्रकार 'बन्दी' अथवा 'बन्दि' स्त्री० स्त्री अथवा पुरुष के लिये समान शब्द है। ये कैदी हैं-इमा बन्दयः, इमा बन्द्यः / जन पु० का प्रयोग स्त्री भी अपने लिए कर सकती है पुरुष भी / अयं जनः (=इयं व्यक्तिः)। परिजन और परिवारदोनों पुलिंग हैं पर नौकर नौकरानियों के लिये एक समान प्रयुक्त होते हैं / "शिवा' (स्त्री०) गीदड़ और गीदड़ी के लिए एक समान प्रयुक्त होता है। अयं शृगालेऽपि स्त्रीलिंग:-क्षीरस्वामी / 'होत्रा' ऋत्विक् का पर्याय है, पर नित्य स्त्रीलिंग में ही प्रयुक्त होता है / 'स्व' प्रात्मा अर्थ में पुलिंग में ही प्रयुक्त होता है-सा स्वस्य भाग्यं निन्दति / कुछ एक प्राचीन भाषाओं के समान संस्कृत में तीन वचन हैं। हिन्दी के बहुवचन के लिये (जहाँ दो व्यक्तियों या वस्तुओं का निर्देश करना हो) हम संस्कृत में बहुवचन का प्रयोग न कर द्विवचन का ही प्रयोग करते हैं / जैसे'मेरा भाई और मैं आज घर जा रहे हैं।' हिन्दी के इस वाक्य में 'जाना' क्रिया के कर्ता दो व्यक्ति हैं तो भी क्रियापद बहुवचन में प्रयुक्त हुआ है। पर संस्कृत में द्विवचन ही होगा-'मम भ्राताऽहं चाद्य गहं प्रति प्रयास्यावः / ' इसी प्रकार ‘में थका हुआ हूँ, मेरे पाओं आगे नहीं बढ़ते', 'उसकी अांखें दुखती हैं' इन वाक्यों के संस्कृतानुवाद में पात्रों और प्रांखों के दो-दो होने से द्विवचन ही प्रयुक्त होगा-'श्रान्तस्य मे चरणो न प्रसरतः / तस्याक्षिणी दुःख्यतः / ' इतना ही नहीं, किन्तु चक्षुस्, श्रोत्र, बाहु, कर, चरण, स्तन आदि अनेक जन सम्बन्धी होने पर भी प्रायः द्विवचन में ही प्रयुक्त होते हैं। इस विषय में वामन का वचन हैस्तनादीनां द्वित्वविशिष्टा जातिः प्रायेण / जैसे-'इह स्थितानां नः श्रोत्रयोर्न मुर्धति तूर्यनादः / ' 'चारैः पश्यन्ति राजानश्चक्षुामितरे जनाः / ' एक व्यक्ति
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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