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________________ संस्कृत में एक ही व्यक्ति तथा वस्तु के वाचक शब्द भिन्न-भिन्न लिंगों के हैं / जैसे-तटः, तटी, तटम्, (तीनों का अर्थ किनारा ही है), परिग्रहः, कलत्रम्, भार्या (तीनों का अर्थ पत्नी हो है), युद्धम्, प्राजिः (स्त्री०), सङ्गरः (तीनों का अर्थ लड़ाई ही है)। कभी-कभी एक ही शब्द कुछ थोड़े से अर्थ भेद से भिन्नभिन्न लिंगों में प्रयुक्त होता है। अरण्य (नपुं०) जंगल का वाचक है, परन्तु अरण्यानी (स्त्री०) का अर्थ बड़ा जंगल है / सरस् नपुंसक० तालाब या छोटी झील होती है, पर सरसी स्त्री० एक बड़ी झील। सरस्वत् पुं० समुद्र का नाम है, परन्तु सरस्वती स्त्री० एक नदी का। गोष्ठ नपुं० गोनों का बाड़ा, गोशाला होती है, परन्तु गोष्ठी स्त्री० परिषद्, सभा। गन्धवह पुं० का अर्थ 'वायु' है, गन्धवहा स्त्री० नासिका का नाम है / दुरोदर नपुं० का अर्थ जुड़ा है, दुरोदर पुं० जुआ खेलनेवाले को कहते हैं / इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि एक ही वस्तु के भिन्न-भिन्न नाम भिन्न-भिन्न लिंगों के हों। पहले बता चुके हैं, अथवा जैसे-तितउ पुं०, चालनी स्त्री और परिपवन नपुं० ये सब चलनी के नाम हैं। रक्षस् नपं० और राक्षस पुं० दोनों ही राक्षस के नाम हैं / किसी शब्द का लिङ्ग मालूम करने में कुछ एक कृत् प्रत्यय भी सहायता करते हैं / इनका परिचय व्याकरण पढ़ने से ही हो सकता है। छात्रों को सूत्रात्मक पाणिनीय लिङ्गानुशासन अथवा श्लोकबद्ध हर्षवर्धन कृत लिंगानुशासन पढ़ना चाहिये / * विशेषण विशेष्य के अधीन होता है। जो विभक्ति, लिङ्ग व वचन विशेष्य के हों वे ही प्रायः विशेषण के होते हैं। कुछ एक अजहल्लिङ्ग शब्द हैं, जो विशेष्य चाहे किसी लिंग का हो, अपने लिंग को नहीं छोड़ते। उन्हें आगे अभ्यासों के संकेतों में निर्दिष्ट कर दिया गया है / यहाँ केवल एक दो अनूठे प्रयोगों की ओर + महत्सरः सरसी गौरादित्वान्डी-क्षीरस्वामी / दक्षिणापथे महान्ति सरांसि सरस्य उच्यन्ते-महाभाष्य / * जैसा भाष्यकार ने कहा है लिङ्ग लोकाश्रित है। इसका विस्तृत तथा सम्यग्ज्ञान लोक से ही हो सकता है और अब जब कि संस्कृत व्यवहार की भाषा नहीं लिङ्ग-ज्ञान कोष से और साहित्य के पारायण से ही हो सकता है / स्थूणा स्त्रीलिंग है, पर गृहस्थूण नपुं० है / ऊर्णा स्त्री० है पर शशोर्ण (शशलोम) नपुं० है / इस विषय में व्याकरण शास्त्र में कोई विधान नहीं।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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