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________________ ( 122 ) सिर काट डाला' / २-लाहौर में प्रायः सरकारी क्लर्क (लिपिकर) रहते हैं और अमृतसर में व्यापारी लोग। ३-राम और सीता पुष्पक नाम वाले विमान में लंका से अयोध्या आये / ४-दस पुत्रों के होते हुए भी गधी भार उठाती हैं / ५-हे राजन् ! आपके परिश्रम से कुछ न बनेगा। मुझ पर चलाया हुमा भी शस्त्र प्रकारथ जायगा।६--वाजश्रवस् ने अपने पुत्र से कहामैं तुम्हें मृत्यु को समर्पण करता हूँ। ७-उसका आचरण मुझे पसन्द नहीं (न रोचते), वह बनावटी तपस्वी (छद्मतापसः) है। ८-वह कर्म से, वाणी से तथा मन से दूसरों को दुःख देता है (दु) / सचमुच बहुत हटी और अभिमानी है।६-मैंने जर्मन भाषा सीखी है, परन्तु अभी इसमें 3 बातचीत नहीं कर सकता / १०-मैंने उसे कान' से पकड़ा और उसकी पीठ पर मुक्का मारा। ११-पूए' आदि घृतपक्व पदार्थ भारी होते हैं, और देर से पचते हैं / १२कवि लोग बुढ़ापे को सांझ के साथ उपमा देते हैं। १३-हमें उन प्राचीन ऋषियों के प्रति अत्यधिक प्रादर देय है, जिन्होंने लोगों को सदाचार का मार्ग दिखाया। 14 --राजा लोग साधारणतः उनके 6 प्रति असहिष्णु (असूयान्वित) हो जाते हैं, जो उन्हें हित की बात कहते है६ / १५-लक्ष्मी को सरस्वती से ईया है / १६-उसने मुझे (मे, मह्यम्) सहायता देने का (साह्यदानम्) (प्रति+ श्रु, मा+श्रु, प्रति+ज्ञा) वचन दिया था, परन्तु कभी सहायता नहीं दी। १७सारा संसार महात्मा गांधी के चरित की इच्छा रखता है (स्पृहयति)। १५-प्रजाएं सस्ती करनेवाले शासक के प्रति विद्रोह करती हैं। मतः राजा उनके साथ सस्ती न करे और न ही अधिक नरमी करे / १६-प्रध्यापक अपने शिष्य पर उसके कर्तव्य से भ्रष्ट होने 1-1. शिरश्चकर्त, (कृत तुदा० लिट) शिरः शातयामास, (शद् पिच-लिट्, मुख्यार्थ-गिराया, गौणार्थ-काट डाला) शिरो ववश्च / २-इस वाक्य की संस्कृत में जो सह शब्द का प्रयोग है वह विद्यमान प्रर्थ में है। उसके योग में तृतीया नहीं हो सकती, क्योंकि जो उससे युक्त (पुत्र) है वह गौणार्थक नहीं प्रत्युत प्रधानार्थक है। सो यहां 'पुत्रः' में तृतीया 'इत्थम्भूतलक्षणे' से हुई है। ३अनया / वाणी भावों के प्रकाशन में द्वार है, अतः तृतीया विभक्ति ही संगत होती है। 'प्रधिकरण' न होने से सप्तमी का प्रयोग भ्रममूलक ही समझना चाहिये। 4..4. कर्णेनागृह्णाम् / यहाँ तृतीया के साथ-साथ ससमी का प्रयोग व्यवहारानुकूल है / सप्तमी का प्रयोग प्रचुरतर है। ५-पूप, अपूप, पिष्टक-पुं० / 6.6. असूयन्ति हितवादिने /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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