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________________ ( 121 ) है 4 / प्रतः यहां भावलक्षणा सप्तमी का अवकाश नहीं। अभ्यास-६ (कारक-विभक्तियाँ ) (कारक विभक्ति प्रथमा और द्वितीया) १-*जिसे यह आत्मा चाहता है उसी से प्राप्त किया जाता है। उसी के प्रति यह प्रात्मा अपने स्वरूप को प्रकट करता है। २–वृक्षों के पीछे छिपे हुए राम के बाप से वाली मारा गया। ३-विष वृक्ष को भी संवर्धन करके स्वयं काट डालना ठीक नहीं। ४-उन्होंने गो-रूप धारण किये हई पृथ्वी से चमकते हुए रत्न और प्रौषधियां दोह कर प्राप्त की। ५-देवताओं ने तीर सागर से चौदह रत्नों को मथ कर प्राप्त किया। ६-डाकुओं ने उसे रास्ते में घेर लिया और उसके पास से 50 रुपये लूट लिए। ७-*घात लगाये बैठा हुआ ऊंघता शिकारी मृगों को नहीं मार सकता / ८-ब्रह्मचारी खाट पर नहीं सोते (अधि+शी), प्रति कीमती गद्देवाली शय्या का तो कहना ही क्या ? 8वह गाँव में छः महीने रहे, और सत्पुरुषों के धर्म से पतित हो जाय, जिसकी अनुमति से प्रार्य (राम) वन को गये हों। १०-शूद्र राजा के राज्य में नहीं रहना चाहिए ऐसा स्मृतिकार कहते हैं। संकेत-२-तरुतिरस्कृतस्य रामस्य शरेण हतो वाली / यहाँ 'वाली' कर्म है / ५-देवाः क्षीराम्बुधिं चतुर्दश रत्नानि ममन्युः / यहाँ 'क्षीराम्बुधि' गौण कर्म है / ६-पारिपन्थिकास्तं पथ्यवास्कन्दन् / पञ्चाशतं रूप्यकांश्च तममुष्पन् (पन्चाशतं रूप्यकांश्च तस्यालुण्ठन्) / -ब्रह्मचारिणः खट्वामपि नाधिशेरते, किमुत महाघ (महाधनम्) सोपबह शयनीयम् ? अभ्यास-१० (तृतीया और चतुर्थी कारक विभक्तियों) १-उसने अपनी ओर बढ़ते हुए शत्रु को देखकर साहसपूर्वक उसका X इस विषय को सर्वमान्य कोषकार प्रिसिपल श्री शिवराम प्रापटे ने सबसे पहले विशद किया। विद्वन्मण्डल उनका एतदर्थ हृदय से आभारी है / इस विषय में अधिक देखना हो तो हमारी कृति शब्दापशब्दविवेक की भूमिका देखिये। 1. यहाँ 'साम्प्रतम्' इस निपात से अभिधान होने पर विष वृक्ष (कर्म) से प्रथमा होती है / इसी प्रकार 'इति' से प्रभिधान होने पर भी-पण्डितं मूर्ख इति मन्यते /
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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