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________________ 78 जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास. . षंडाग सेना को युद्ध की तैयारी की आज्ञा देता है।२७ / पुराणों में सेना के मुखिया सेनापति के लिए प्रायः सेनानी शब्द का प्रयोग किया गया है१२ | विभिन्न कालों में सेनापति के लिए महादण्डाधिपति, दण्डनाथ, दण्डनायक आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता था१२६ | युद्ध पुराणों से दिग्विजय, कन्या द्वारा राजा का वरण करना एंव कन्या अपहरण युद्ध के कारण होने की जानकारी होती है।३० | भारतीय परम्परा में युद्धों को सम्पादित करने की अपनी परम्परा रही है। युद्धों के सम्पादनार्थ युद्ध की आचार संहिताऐं प्रचलित रही हैं। सामान्यतया जैन परम्परा में धर्मयुद्ध प्रशस्त माना गया है।३१। आदि पुराण युद्ध विषयक सिद्धान्तों का विश्लेषण तो करता है साथ ही साथ युद्ध के प्रकारों का भी उल्लेख करता है। नेत्र युद्ध, मल्लयुद्ध आदि के विशेष साक्ष्य नहीं प्राप्त होते लेकिन दृष्टियुद्ध, जययुद्ध, बाहुयुद्ध एंव गजयुद्ध के पर्याप्त साक्ष्य प्राप्त होते हैं१३२ / युद्ध के लिए राजा मंत्रिपरिषद एंव सेनापति से सलाह लेते थे।३३ | मित्र राजा अस्त्र शस्त्र, वाहन एंव सेना द्वारा सहायता देते थे।३४ | युद्ध की तैयारी एंव अभियान के समय रणभेरी शंख, तुरही आदि बजाये जाते थे।३५ राजपरिवार की साहसी एंव युद्धप्रिय महिलाएं एंव दासियाँ भी सैनिक अभियान के साथ जाती थीं१३६ | युद्ध में प्रयोग किये जाने वाले अस्त्र-शस्त्रों एंव आयुधों का विस्तृत उल्लेख पद्मपुराण में किया गया है।३७ | आग्नेयास्त्र, वारुणास्त्र, तामशास्त्र, प्रभास्त्र, नामास्त्र, गरुड़ास्त्र आदि दिव्यास्त्रों३८ एंव निद्रा प्रतिवोधनी'३६ और अनेक विद्याधरों द्वारा साधित विद्याओं के प्रयोगों का भी उल्लेख मिलता है४० ! योद्धाओं के वस्त्राभूषणों का भी वर्णन मिलता है जिन्हें वह युद्ध में जाते समय अपने शरीर रक्षा के लिए प्रयोग करते थे। युद्धभूमि में योद्धाओं को उत्तेजित करने के लिए विविध वाद्य यन्त्रों द्वारा तुमुलनाद किया जाता था४२ | राजा भी युद्ध करते थे।४३ | जीवित शत्रुओं को बन्दी बनाकर डेरे पर एंव बन्दी राजा को राजा के सम्मुख लाया जाता था४४ | किसी महापुरुष की प्रार्थना पर बन्दी राजा को छोड़ देने एंव सम्मान देने के उल्लेख मिलते हैं।४५ | कभी-कभी द्वीपों के जीते गये राजाओं को वहॉ का अधिकारी बना दिया जाता था६ | दिग्विजय वीरता का द्योतक थी जिसका स्वागत अन्य राजा भेंट लाकर एंव नतमस्तक होकर करते थे। पटहशंख, झर्झर एंव बन्दीजनों के जयनाद द्वारा अभिनंदन किया जाता था / दूत व्यवस्था कौटिल्य कालीन दूतनीति के अनुसार ही शक्तिशाली राजानिर्बल राजा के
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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