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________________ जैन साहित्य का समाजशास्त्रीय इतिहास के समान साठ नगरों एंव उत्तरश्रेणी में पच्चास नगरों की स्थिति बतलायी गयी हैं जहाँ विद्याधर निवास करते थे। इस पर्वत के अग्रभाग पर नौ कूट हैं। इस भरत क्षेत्र का नाम आदि तीर्थकर ऋषभनाथ के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा / हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में भी भगवान ऋषभ के पुत्र भरत के नाम से ही "भारत" नाम पड़ने के वृतान्त मिलते हैं। ऐरावत जम्बूद्वीप के दक्षिण में ऐरावत क्षेत्र हैं। इसका विस्तार हैरण्यवत क्षेत्र का 1/4 है४२ / भरत क्षेत्र की भांति इस क्षेत्र के अग्रभाग पर 6 कूट हैं। हेमवत क्षेत्र भरत क्षेत्र के आगे हेमवत क्षेत्र है इसका विस्तार दो हजार एक सौ पाँच योजन तथा पॉच कला प्रमाण माना गया है। हरिवर्ष क्षेत्र हेमवत क्षेत्र से आगे आठ हजार चार सौ इक्कीस योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में से एक भाग प्रमाण युक्त हरिवर्ष क्षेत्र है। विदेह क्षेत्र इसका विस्तार तैंतीस हजार, छह सौ चौरासी योजन तथा एक योजन के उन्नीस भागों में चार भाग प्रमाण है। इसकी प्रत्यंचा जम्बूद्वीप के बराबर एक लाख योजन है। रम्यक एंव हैरण्यवत क्षेत्र विदेह क्षेत्र के विस्तार से चौथाई विस्तार रम्यक क्षेत्र का एंव रम्यक से चौथाई विस्तार हैरण्यवत क्षेत्र का है। कुलाचल ___ जम्बूद्वीप के अर्न्तगत सात क्षेत्रों की स्थिति के साथ ही छह कुलाचलों एंव गंगा, सिन्धु आदि चौदह नदियों की जानकारी होती है४६ | हिमवान, महाहिमवान्, निषध, नील, रुकमी और शिखरी ये छ: कुलाचल हैं इनमें उत्तरवर्ती कुलाचल अपने से पूर्व कुलाचल से चौगुने विस्तार वाला हैं। इनमें से आगे के तीन कुलाचल दक्षिण के कुलाचलों के समान कहे गये हैं। ये कुलाचल जम्बूद्वीप के प्रत्येक क्षेत्र में पाये
SR No.032855
Book TitleJain Sahitya ka Samajshastriya Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Agarwal
PublisherClassical Publishing Company
Publication Year2002
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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